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Showing posts from 2019

क्यों न हम जानें प्यार की ज़ुबान

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मुझे छूह लेतीं हैं उसकी यादें  कुछ यूँ जिस तरह हवा में जल  मेहकाते हुए उन पलों की यादें  जैसे रेहतीं हैं खुशबु और फूल  हो न हों अजीब मिलन की यादें  के सिर्फ यादों से जी लें वो पल  मानों अब भी हैं साथ उनकी यादें  जैसे चाँद गगन में बीच में बादल  खुली आँख इन यादों से लेकिन  आँखों ने जो बस देखा वो दलदल  लगे मोर्चे हर तरफ खून-खलबल   मरने-मारने की धमकियों के बल  मन हुआ जाता है प्यार से दुर्बल जो जान से भी प्यारे साथी निर्बल  आज लगे उगलने नफरत फ़िज़ूल  क्यों न हम जानें प्यार की ज़ुबान  है सभी के लिए सहज और सरल  मिलजुल कर रहना था संस्कार कभी  आज वोही सीखने आये लेकर ढाल  धर्म-जाती का अंतर बताकर हाल  क्यों सीखते नहीं देखकर गुलाल  कई रंगों से भरे हैं न कोई मलाल  क्यों इंसान भेद करे अपनों के संग  मुझे छूह लेतीं हैं उसकी यादें  कुछ यूँ जिस तरह हवा में जल  मेहकाते हुए उन पलों की यादें  जैसे रेहतीं हैं खुशबु और फूल  ...

जाग उठ कहीं बहुत देर न हो जाये

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कौन हैं हम कहाँ से आये हैं  क्या लेकर आये हैं साथ हम  जो आया है वो जायेगा भी  न कुछ तेरा है न ही कुछ मेरा  किस हक़ से मैं लूँ ये जगह  दिया नहीं मुझे किसी ने ये  कौन हूँ मैं तुझे हटाऊँ यहाँ से  जब ये धरती है हर किसी की  न सूरज न चाँद बांटे आसमां  न पेड़-पौधे न पशु-पक्षियां  सभी रहते  मिल-जुलकर  फिर हम इंसान को क्या हुआ ? जो अधिकार जताने लगे यहाँ  धर्म के नाम पर तो देश के नाम  कहाँ से आये कहाँ ले जाएंगे सब  इंसान कब आएगा इंसान के काम  कब वो करेगा एक दूसरे से प्यार  कब वो समझेगा अपनी सीमाएं  इंसान कब करेगा इंसान से प्यार  छोड़कर नफरत की दहशत की  फितरत ये इंसान की अहंकार की   खुद से खुदा हो जाने की ग़लतियाँ  जाग उठ कहीं बहुत देर न हो जाये  के पछताने के लिए भी न रहे समां ! ~ फ़िज़ा 

फिर से बनाते हैं चाहतों का सुरूर यूँही !

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जो चाहा था ज़िन्दगी भर वो मिला नहीं  जो मिला उसी से चाहत पूरी करनी चाही  मगर वो चाहत रखनी भी ठीक लगी नहीं  सोचते रहते हैं उम्र भर क्या करें क्या नहीं  ज़िन्दगी घुमाकर ले आयी फिर उसी डगर  अब जाएं तो जाएं किधर जब वक्त नहीं  समय का पलड़ा है बहुत भारी अभी भी  वक्त है कम, गर साथ दो तो चलो कहीं  फिर से बनाते हैं चाहतों का सुरूर यूँही  चल पड़ेगी हमारी रही-सही हयात वहीँ  ~ फ़िज़ा 

ढूंढ़ने निकला हूँ मैं अपने ही सफर में खुद को !

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ढूंढ़ने निकला हूँ मैं अपने ही सफर में  खुद को ! बदल जाती हैं मेरी राहें दूसरों  के सफर में  खुद को भुलाकर उस राह निकल गया मैं  कभी किसी के तो कभी किसी को सफर में  पहुँचाने के बहाने ही सही अपनी राह से हुआ  बेखबर ! ढूंढ़ने निकला हूँ मैं अपने ही सफर में खुद को ! क्यों मैं भटक जाता हूँ अपने ही सफर से फिर लगता है जैसे मेरा होना शायद है इसी के लिए   किसी के लिए बनो सहारा तो किसी को दो यूँही  हौसला ! ढूंढ़ने निकला हूँ मैं अपने ही सफर में खुद को ! कहाँ हैं मेरे ख्वाबों का वो कम्बल जिसे पहने  होगये बरसों मगर कभी यूँही हिंडोले लेता हुआ  कभी -कभी कर जाते हैं मेरे होने न होने का ये  एहसास ! ढूंढ़ने निकला हूँ मैं अपने ही सफर में खुद को ! ~ फ़िज़ा 

जन्मदिन तुम अच्छी रही आज !

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आज का दिन भी बड़ा सुहाना था  हर दिन की तरह प्यार मोहब्बत इन्हीं सब चीज़ों से भरा पड़ा था  कितने ही पन्ने किताबों के पढ़ लो  सफ़ा नयी कहानी नये सिरे से था  दिल किसी अल्हड की तरह फंसा  २०-२१ की उम्र-इ-दराज़ पर और  सफ़ा बड़ी रफ़्तार के संग पलटता  मगर यहाँ किसको पड़ी है जल्दी   हमें तो अल्हड़पन का है नशा अभी  कल जब आये देखेंगे उस कल को आज को दबोचलें बाँहों में कसके   गुज़रते लम्हों को सेहलाते मचलाते  ज़िन्दगी बस यूँही चल गुन -गुनाते  मस्ती में गाते नाचते झूमते इठलाते  फ़िज़ा मस्ती में अभी और महकते  जन्मदिन तुम अच्छी रही आज मुझ से ! ~ फ़िज़ा 

दिवाली की हसीन रात है

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दिवाली की हसीन रात है  लालटेन से निकलती रौशनी  घर के अंधेरों को चीरती हुई  परिवार को संग रखती हुई  दीप जलाने की अनुमति नहीं  आँधियाँ करती है गुस्ताखियाँ  संग ले जाने की देती हैं धमकियाँ  उड़े लपटें आग की मशाल बनकर  जलाकर ध्वंस इंसान का अहम्  सीखाती है सभी को संयम नम्रता  कहती है इंसान से आँख मिलाकर  'तू नहीं किसी से बड़ा, न तेरा धन  न ही कोई औदा सब है प्रकृति से कम'!!  #happydiwali #humilitycheck  #behuman #youcantbeatnature  #agreeyouarehumanonly ~ फ़िज़ा 

ढाई अक्षर प्यार के - भाषा

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मुझे कुछ कहना है तुमसे  कहूं तो कैसे  क्या समझ पाओगे ऐसे  बोली तो नहीं जानते  फिर इशारों से ही जैसे  कहा दिया हाल दिल का  अब हैं एक दूसरे की बाहों में  आये अलग जगहों से  मिले एक किनारे  बोली जो भी हो अपनी  भाषा प्यार की समझे  आज बोल भी लेते हो  क्यूंकि प्यार जो है मुझसे  मुझे कुछ कहना है तुमसे  कहूं तो कैसे  ~ फ़िज़ा  #हिंदीदिवस #१४सितम्बर१९४९ 

बस इंतज़ार है के कब दीद हो रंगीन फ़िज़ा में !!

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किसी के रहते उसकी आदत हो जाती है  उसके जाने के बाद कमी महसूस होती है ! हर दिन के चर्ये का ठिकाना हुआ करता है   अब जब गए तो राह भटके से ताक रहे हैं ! जब साथ रहते हो तब उड़ जाते हैं हर पल अब काटते नहीं कटते ठहर गए सब पल !  महसूस हो गया है तुम्हारे रहने और न रहने में  बस इंतज़ार है के कब दीद हो रंगीन फ़िज़ा में  !! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी से कोई क्या गिला करे?

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ज़िन्दगी से कोई क्या गिला करे? जब ज़िन्दगी ही कुछ न कर सके  बहती धारा की तरह निकलती है  सरे आम घूम-घाम कर बढ़ती है  और देखो तो ज़िंदगी मझधार में  सीखा देती है अपने और पराये  अपने होते हैं कम होते हैं और  पराये करीब अपने से लगते हैं क्यों ज़िन्दगी ऐसा सब सीखाती  मगर सोचने पर मजबूर करती है  ज़िन्दगी से कोई क्या गिला करे? जब सोचा था नहीं पड़ना है कहीं  झमेलों से बचना है आगे बढ़ना है  जिसे जो चाहे वो ले लेने दो उसे  न भावनाओं में बेहना है किसी के  न ही किसी का उद्धार करना है  अपना जीवन जी लो तो बहुत है  न मुसीबत को मोलना न झेलना  जिनसे भी मिलना मिलनसार रहना  अकेले आये हो अकेले चले जाना  ज़िन्दगी से कोई क्या गिला करे? ~ फ़िज़ा  

कल चौदहवीं की रात नहीं थी, मगर फिर भी!!!!

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कल श्याम कुछ थकी थकी सी थी  कल पटाखों से भरा आसमान था  जाने -अनजाने लोगों से मुलाकात  फिर घंटों बातें और सोच में डूबे रहे  वक़्त दौड़ रही थी और हम धीमे थे  चाँद श्याम नज़र तो आया था मुझे  पर रात तक तारों के बीच खो गया  मगर मोहब्बत की लौ जला चूका था  रात निकल रही थी कल के लिए और  हम अब भी सिगार सुलगाते बातें करते  वो मेरे पैर सहलाता बाते करते हुए  बीच-बीच में कहता 'I love you' midnight का वक़्त निकल गया  मगर यहाँ किसे है कल की फ़िक्र  घंटों मोहब्बत और भविष्य की बातें और फिर तारों को अलविदा कर  चले एक दूसरे की बाहों में सोने  लगा तो था अब नींद में खो जायेंगे  मगर दोनों एक दूसरे में ऐसे खोये   काम-वासना-मोहब्बत-आलिंगन  की इन मिश्रित रंगों में खोगये  समझ नहीं आया रात गयी या  सेहर ठहर सी गयी !!! ~ फ़िज़ा  

परछाइयाँ

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सवाल करतीं हैं मुझ से मेरी परछाइयाँ  जवाब दूँ तो क्या सुनेंगी ये परछाइयाँ ? कुछ कहते हैं बेजान होती हैं परछाइयाँ  मौका मिले वहां पीछा करती परछाइयाँ  कभी डराते पीछे-पीछे चलकर परछाइयाँ  तो कभी हौसला दे आगे आकर परछाइयाँ  समय के साथ-साथ ये बदलती परछाइयाँ  कभी लम्बी तो कभी छोटी बनती परछाइयाँ  फिर भी मुझ से करतीं सवाल ये परछाइयाँ  कहो तो क्या कहूं मैं इनसे जो हैं परछाइयाँ  जानतीं तो हैं ये सब साथ जो हैं परछाइयाँ  सवाल करतीं हैं मुझ से फिर भी परछाइयाँ  अब जवाब दूँ भी तो क्या दूँ ऐ परछाइयाँ ? ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी का एकमात्र फार्मूला

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आशा जानती थी हमेशा से  ज़िन्दगी का एकमात्र फार्मूला  अकेले आना और अकेले जाना  रीत यही उसने पहले से हैं जाना  मगर होते-होते वक्त लग गया  माता-पिता बहिन-भाई-सहेली वक्त इन्हें साथ ले चलता गया   धीरे-धीरे सखियाँ और घरवाले  सभी अपनी-अपनी जगह ठहरे    और उसे जीवन साथी मिल गया   चलते-चलते वक़्त याद दिलाता अकेले आना और अकेले जाना है  मगर तब भीड़ की आदत पड़ गयी  तब तक ज़िन्दगी अकेली पड़ गयी ! ~ फ़िज़ा 

डट के रहना निडर होकर नज़रें मिलाना

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हलकी सी ही सही राहत मिली मुझे, गर्दिश में जब हों हमारे सितारे, आँख से आँख मिलाकर जियो प्यारे  लोग बुरे दिनों को याद ज़रूर दिलाएं  मगर आप इन सब से न मुँह मोड़ें  ग़म न कर किसीका जब खुद हादसों से गुज़रे  डट के रहना निडर होकर नज़रें मिलाना  के मौत से ज्यादा क्या गनीमत है और होना ? ~ फ़िज़ा 

केसरी रंग ये शाम की

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केसरी रंग ये शाम की  करती है बातें इशारे की  कभी कहती है रुक जाओ  के अभी ढलने में वक़्त है  तो अभी ढल रही है शाम  कल आने की लेती है कसम इस जाने आने के सफर में  इस ढलने में और बहलने में  कितने अरमानों का आना  कितने अंजामों का जाना  हर रंग के रंगों में ढलकर  देती है संदेसा बदलकर  देख लो आज जी भरकर  कल का रंग फिर नया होगा  नए रंगों से नया श्रृंगार होगा  ~ फ़िज़ा 

अब कोई दर्द नहीं होता

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मुझे अब कोई दर्द नहीं होता  किसी बात का न लफ्ज़ का  न किसी रवैये का नज़रअंदाज़ का  मुझे जितना भी चाहो हराना  मुझ से जितनी भी कर लो नफरत  मेरी न करो इज्जत न इजाजत  सामने होकर भी अनदेखा करलो  कोई सवाल पर जवाब भी न दो  मैं इन सब से आगे निकल गयी हूँ  अब सबकुछ सुन्न सा पड़ गया है  मुझे दर्द नहीं होता न ही कोई गिला शायद तुम लाख कोशिश कर रहे हो  अफ़सोस ये सब व्यर्थ है परिश्रम  इसका एहसास दिलाया तुम्हीं ने  और अब मैं आज़ाद हूँ हर ख़याल से  अब कोई दर्द नहीं न आकांशा मेरी  अब सब ठीक है और अत्यंत शांति है  ~ फ़िज़ा 

पंछियों की गुफ्तगू

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आज कहने को कुछ भी नहीं पंछियों को गुफ्तगू करते देखा  जहाँ दो साथी एक परिवार के  गृहस्थी के रोज़मर्रे और ये झमेले  दोनों निकले घर से बटोरने चने  बटोरना तो मगर चुपके -चुपके  क्यों न एक बटोरे चुपके-चुपके  और दूजा देखे पेहरा देते-देते  रंगीले जोड़ी की मिली-जुली   हरकत तो देखो है एकता उनमें भी ! ~ फ़िज़ा 

खिलते मेहकते रहेंगे !

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सितमगर  कम न होंगें  मगर हम  चुप न रहेंगे  ज़िन्दगी  की तल्खियां  तो हमेशा ही साथ होंगे  हौसले मगर कम न होंगे  धुप-छाँव बाढ़ या सूखा  तब भी हर बार निखरेंगे  सतानेवाले कम न होंगे  चाहे  रूप  अनेक होंगे  रिश्ते  बे-रिश्ते भी होंगे  फिर भी मुस्कुराते रहेंगे  खिलते मेहकते रहेंगे ! ~ फ़िज़ा 

हौसलों के परिंदे उड़ते हैं उड़ान

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दिल की अंगड़ाई लेती है उड़ान  अब न रुके ये रोकने से उड़ान  बादलों को छुकर चला है उड़ान  संभलना गिरा न दे उमंग उड़ान  सुनेहरे सपनों से सजी है उड़ान  देखो सूर्यास्त तो नहीं है उड़ान  पर दिए हैं आसमां छुलो उड़ान  यूँ भी न उड़ो के गिर पड़े उड़ान  हौसलों के परिंदे उड़ते हैं उड़ान  सलीके से उड़ो तो हसीं है उड़ान  ~ फ़िज़ा 

नारी आज भी है पिछड़ी,परायी..!

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जो बर्फीले जुल्म में  या काँटों के सेज़ में अन्याय के झोंकों में  भेदभाव की आँधियों में  बातों के कांच की चुभन में  धिक्कार की बारिश में  अत्याचार के बाढ़ में भी  अपना सुकून खोजती हुई  नारी आज भी सेहमी हुई  सिकुड़ी हुई घबराई हुई  संभलते -सँभालते हुए  इस पीढ़ी से उस पीढ़ी तक  सँवारते, बढ़ाते हुए चली आयी  हाय नारी! तेरी अब भी यही है कहानी  जहाँ चाँद में घर खरीदें वहां  नारी आज भी है पिछड़ी,परायी   डराई, हताश, निराश सतायी ! फिर भी कहें सब सुन्दर नारी !! ~ फ़िज़ा 

मेरा दिलबर चाँद है वो

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दूर रास्ते चले आये हम  जाने-अनजाने मिले हम  देखो तो सही कौन है वो  मेरा दिलबर चाँद है वो  देखा जो उसे इस तरह  जलन से भरा दिल मेरा  मैं भी बैठूंगी गोद तुम्हारे  ऐसा ही हट मैंने किया  देख-देख दुखी हुआ  बस आंव न देखा तांव  तस्वीर लेने दिल मचला दीवानी 'फ़िज़ा' क्या होगा ! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी के रास्ते ही हैं टेढ़े-मेढ़े

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ज़िन्दगी के रास्ते ही हैं टेढ़े-मेढ़े  यहाँ कहाँ किसी से ये संभले  जब रास्ते ही हों टेढ़े-मेढ़े ! ज़िन्दगी खुद दगा देती है  अब कोई और क्या देगा दे  बस सोचो यही है रास्ते सबके  और यही है सबका चलन  कभी कोई संभल जाए तो  कहीं आकर थम जाए फिर  कोई संभलते इन्ही रास्तों पर  निकल पड़ें और फिर गिर पड़े  रास्ते हैं अनजाने और राही भी  ऐसे में एक-दूसरे पर हो इलज़ाम  ज़िन्दगी के रास्ते ही हैं टेढ़े-मेढ़े  यहाँ कहाँ किसी से ये संभले  जब रास्ते ही हों टेढ़े-मेढ़े ! ~ फ़िज़ा 

पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएं !

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फूलों से कलियों से  सुनी है कई बार दास्ताँ  खुशहाल हो मेरा जहाँ  तो खुश हूँ मैं भी वहां  जब पड़ती है एक चोट  सीने में मेरे वृक्ष्य के तब  जड़ से लेकर कली तक गुज़र कर चलती है दर्द  जिसे लग जाता है वक्त  ज़ख्म भरने में और बढ़नेमें  फूल अच्छे लगते हैं सभी को  हमारी जड़ों को रखें सलामत  हम और तुम रहे आबाद यूँही  सोचो गर यही हाल कोई करे  तुम्हारा या तुम्हारे वंश का  खत्म होगा जीवन इस गृह का  सही समय से सीख लें हम  करें पालन सयम का और  जीएं और जीने दें सभी को  क्या तेरा क्या मेरा जो ले जाए  आज है तो कल नहीं बस  पल भर का ये साथ है अपना  चलो मिलकर वृक्ष लगाएं हम  अपने लिए स्वस्थ वातावरण  और इनके लिए कुछ जंगलें  पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएं ! ~ फ़िज़ा 

सेहर यूँही आती रहे ..!

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ज़िन्दगी की ख्वाइशें यूँ सेहर बनके आयीं  के एक-एक करके  किरणों की तरह यूँ   आँखों में गुदगुदाते  मंज़िलों को ढूंढ़ते यूँ निकल पड़े ऐसे  जैसे परिंदों को मिले  आग़ाज़ जो पहुंचाए  उन्हें उनके अंजाम तक  सेहर यूँही आती रहे  अंजाम के बाद फिर  नए आग़ाज़ के साथ  ~ फ़िज़ा 

कविता का ये महीना...!

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कल आज में गुज़र गया  ख़्याल था मगर भूल गया  एक से एक तमाम होगया  अंजाम ये के वक़्त खो गया  बोलते सोचते निकल गया  कल आज में बदल गया  मेरी कविता का प्रण ये के   आज एक नहीं दो होगया  कविता का ये महीना अब  यूँ ही सही  सफल हो गया ! ~ फ़िज़ा 

कोई बुलाता है मुझे...!

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कोई बुलाता है दूर मुझे ऐसे  लेना चाहता हो आगोश में कहता है कुछ जो रहस्य है  बचाना चाहता है इस जहाँ से  कहता है छोड़ दो इसे यहाँ  ज़रुरत है मेरी कहीं और वहां छोड़ दे ये जग है बेगाना  यहाँ नहीं कोई जो अपना   सागर की लहरें कहतीं है  बार-बार दहाड़ -दहाड़ कर  के चले भी आओ संग हमारे  ले चलेंगे दूर लहरों के सहारे  और फिर छोड़ आएंगे उस छोर  नयी दुनिया नया ज़माना फिर  इस जहाँ से अलग हैं लोग वहां  प्राणी को प्राणी से परखते हैं  न ऊंच-नीच न जाती-पाती  सब समान एक जुट साथी  लहरों को तरह मचलते  हँसते-खेलते और लौट जाते  चलो, चलो संग हमारे वहां  तनहा कोई नहीं रहता वहां  कोई बुलाता है दूर मुझे ऐसे  लेना चाहता हो आगोश में कहता है कुछ जो रहस्य है  बचाना चाहता है इस जहाँ से  ~ फ़िज़ा 

ये वृक्ष

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बरसों से देख रहा है  ये वृक्ष चुप-चाप सब होनी - अनहोनियों को  एकमात्र गवाह जो गुंगा है  न कुछ बोल सकता है  न रोक सकता है किसीको   केवल देख सकता है  अपनी खुली आँखों से  न्याय और अन्याय  सब देखके गुज़रे कल की  कुछ कहती है झुर्रियां  सुनाती है ये कहानी  बरसों से देख रहा है  ये वृक्ष चुप-चाप सब! ~ फ़िज़ा 

जन्मदिन की शुभकामना !

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कब कैसे कहाँ  वो इस कदर बड़ी  के पता ही न चला  मुझे लांघ कर बढी  साल पर साल आएंगे  गिनतियाँ चाहे कितनी  उम्र का क्या है बढ़ना  ये तो सालों साल का है  ज़िन्दगी ज़िंदादिली से  जियो खवाब सजाओ  और बस हासिल करो  जीवन में ऐसा कुछ नहीं  जो न कर सको तुम   बन जाओ उस परिंदे जैसे  जो ऊँची उड़ान उड़े और  जब शाम का वक़्त हो  तो घर लौटना न भूलें  खुशियों का खज़ाना  रहे तुम्हारे पास बस ये  तोहफा औरों को भी देना  सलामत रहो तुम यही दुआ  जन्मदिन की शुभकामना ! ~ फ़िज़ा 

ये शाम

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वो देखता है मुझे यहाँ  मैं देखूं उसे यहाँ वहां  ढूंढे न मिले ऐसा भी कोई  जिसे कहते हैं लोग चाँद  चुपचाप देखना कुछ न कहना  मन के आँसूं यूँही पी जाना  उसे एहसास है ये मगर  बंधे हैं हाथ उसके भी ऐसे  अपनी दिनचर्या के परे  वो भी क्या कर सकता है  जब उसे आना चाहिए  तब वो आता और जब  अमावस्या आये तो गायब  भला चुप ही तो रहा जाए  कुछ भी तो नहीं कहा जाये  चाहे कोई यूँही चिल्लाये  मचाये शोर-गुल खैर  अपनी तो हर शाम  ख़ामोशी में बीत जाए  ये शाम और एक सही ! ~ फ़िज़ा 

एक नोटर डायम जो जल रहा है !

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झुलसकर राख बन गया सब  इतिहास का वो सुनेहरा पन्ना  हमेशा के लिए भस्म होगया  सालों की मेहनत, कहानियां  खो गयीं लपटों में ऐसे कहीं बन के एक सदमा जैसे यूँही   यादों के काफिले और इतिहास  सालों तक दिलाएगा याद अब एक मातम सा माहौल और  एक नोटर डायम जो जल रहा है ! ~ फ़िज़ा 

दो दिल प्यार में

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दो दिल प्यार में  डूबे हुए भीगे हुए  एहसास जो दबे  भावनायें मचले हुए  रहते दूर-दूर मगर  दिल रहे आस-पास जैतून के पेड़ पर  रोज़ मिलने का बहाना  और न मिले तो फिर  देर-देर तक आवाज़ देना  तुम्हारी याद आती है  चले आओ की बैठक  बुलाती है ! ~ फ़िज़ा  

शुक्रिया

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फूलों का गुलदस्ता नज़र आता है मुझे  उसका चेहरा, खिला हुआ रंग  हँसता हुआ कमल  नज़र आता है, खूबसूरत बहुत उसपर लाज की  लालिमा कातिल,  किसे कहें हम  ज़ालिम अब  बनानेवाले तेरा, शुक्रिया अदा करे  वो भी और  हम भी! ~ फ़िज़ा  

हंसी के फव्वारे ...

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बरसों बाद आज खूब हँसे  कुछ हम-उम्र थे साथ और  बड़े भी मगर फासले कम  दोस्ती ज्यादा अपनापन भी मिले थे भोजनालय में सब  बातों की लड़ियाँ जो बनी  बनती ही गयी एक से एक  हंसी के फव्वारे निकल पड़े  बस कुछ देर तक बचपन  जवानी के पल यूँ लहराए   वक़्त का न हुआ अंदाज़ कब घंटों बीत गए और  याद आया एक मीटिंग  जो है अब बॉस के साथ  पल में सोचा भाग के पहुंचे  फिर जल्दी से किया मैसेज  थोड़ी देर में पहुँच रहे हैं जनाब  दोपहर के भोजन में अड़के हैं  और फिर वोही शरारत हंसी  जन्नत की सैर कर आये थे  और ऐसे एक झलकी जैसे  सब ख़त्म हुआ और आगये दफ्तर का मेज़ कुछ लोग  और काम ! ~ फ़िज़ा  

चला था मैं किस डगर

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चला था मैं किस डगर  क्या सोचके क्या खबर  धुप है या छाँव न खबर  आग है या दरिया न डर  निकले थे कोख़ से या घर  चलना है, आगे जो है नगर  ठहरता है कौन यहाँ मगर  जब मंज़िल है कहीं और  जाना है मुझे अभी और दूर  जहाँ न कोई दर-ओ-दीवार   न सीमाओं का हो कभी डर  ऐसा एक आज़ाद हो नगर  जहाँ करते रहना है सफर  ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी के कुछ कदम अकेले

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ज़िन्दगी के कुछ कदम अकेले  चले तो हैं अपने बल पे अकेले  कभी डरके,थम के कभी संभलके  सोचा नहीं आगे-पीछे बस चले  तरह-तरह के जगह लोग मिले  हादसों से, हरकतों से सबक मिले  ज़िन्दगी और साथी कौन समझ लिये  वक़्त गुज़रे थम के गुज़रे तो बरसके  ज़िन्दगी हकीकत सलीके से समझे  अपने पराये में फरक करीब से समझे  गुज़रते रहे रास्तों से और वक़्त गुज़रते  किसी से गिला नहीं बाईस साल गुज़रे वक़्त के तकाज़े ने साफ़ दिखलाये  ज़िन्दगी शिकायत की वजह भी न दिये  शुक्रगुज़ार ऐ ज़िन्दगी तेरा और ये रास्ते   कभी न रुकते चाहे हम न साथ चले तेरे  ज़िन्दगी न छोड़े बेशक हम रास्ते बदलें  कभी ज़िन्दगी जियें तो कभी मौत लिए ! ~ फ़िज़ा 

भीगा मौसम भीगी अँखियाँ

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भीगा मौसम भीगी अँखियाँ  जाने किस-किस की दास्ताँ  सुनाएं नितदिन झर -झर वर्षा  किसी के ख्वाब टपकते जैसे  किसी के अरमान बेह गए जैसे  भीगा मौसम भीगी अँखियाँ  जाने किस-किस की दास्ताँ  सुनाएं नितदिन झर -झर वर्षा किसी का मिलना या बिछड़ना  मोहब्बत और विरह की दास्ताँ  तरसना- तड़पाना मिलन की घड़ियाँ  भीगा मौसम भीगी अँखियाँ  जाने किस-किस की दास्ताँ  सुनाएं नितदिन झर -झर वर्षा ये बारिश ले आये सबकी कहानियां  पहाड़ों से लेकर गली, तालाब  खेत-खलियानों में अनाज जैसे  भीगा मौसम भीगी अँखियाँ  जाने किस-किस की दास्ताँ  सुनाएं नितदिन झर -झर वर्षा लहर हरियाली की जैसे क्रांति  खुशहाली तो कहीं तबाही बाढ़ की  सुख की दुःख की गुलाबी चादर लिए  भीगा मौसम भीगी अँखियाँ  जाने किस-किस की दास्ताँ  सुनाएं नितदिन झर -झर वर्षा ~ फ़िज़ा 

एक आशियाना ऐसा भी हो

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एक घरोंदा हर कोई चाहे  इंसान हो या पशु-पक्षी  एक जगह जो अपनी हो  छोटी हो फिर जैसी भी हो  कहने को बस वो अपनी हो  ख़ुशी के आँसूं, दुखों के घूँट  पी लेंगे वो खाली बर्तनों में  खिलता-फूलता सा जीवन  बना लेंगे वो मिल-जुलकर  क्या मांगे वो ज्यादा किसी से  सिर्फ चाहे एक अपना घर जो  एक सुरक्षित मेहफ़ूज़ अपनी हो  कहने को भी रहने को भी जो  ढूंढते हैं हम सभी जगह पर  हर गाँव, शहर, देश और गली  बना लेते घरोंदा जहाँ मिले टहनी  एक आशियाना ऐसा भी हो  जहाँ रहे छोटे-छोटे सपने  खिलते खुशियों के कली और फूल  आते तब भंवरें गुन -गुन करके  मधुमक्खियों की बातें होतीं  छोटी सी मगर मधु जैसे बातें होतीं  एक घरोंदा हर कोई चाहे  इंसान हो या पशु-पक्षी  एक जगह जो अपनी हो  छोटी हो फिर जैसी भी हो  कहने को बस वो अपनी हो ! ~ फ़िज़ा 

चलते ही चले जाना है

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चलते ही चले जाना है  यहाँ से वहाँ  तक तो वहाँ से यहाँ तक सभी सफर ही तो कर रहे हैं  मंज़िल की तलाश में  मंज़िल की ओर कभी  कभी यूँही घूम हो जाने  चलते ही चले जाना है  यहाँ से वहां तक तो।  बादलों का कारवाँ  वहां भी है यहाँ भी बात वोही ढूंढ़ते हुए  शायद वो जानते हैं  मगर हमारी तलाश  अब भी है ज़ारी यहाँ  वहां भी है भीड़ यहाँ भी  चलते ही चले जाना है  यहाँ से वहां से तक तो ~ फ़िज़ा