सहनशीलता !
दिन का चैन खो गया कहीं
तो रातों की नींद घूम है कहीं
कहीं से रोशनी की उम्मीद है
तो सिर्फ अन्धकार की बातें हैं
कोई सूरत तो नज़र आये कहीं
कोई रास्ता हो जहाँ उम्मीद हो
दुआ न दवा से सिर्फ दिमाग से
हम-तुम इंटरनेट से साथ निभाएं
मगर घर से बहार न निकालें अब
घर पर रहकर पूरी करें दिनचर्या
कुछ सालों के लिए रहे दूर-दूर
शायद फिर वो दिन भी आये जब
गले-मिलकर मस्तियाँ करें सब
किन्तु अब संयम और सावधानी
इनका ही उपयोग करें हम सब
चलो कुछ धैर्य भी साथ रखते हैं
कुछ अपने लिए कुछ औरों के लिए
नमन!
~ फ़िज़ा
Comments
कुछ अपने लिए कुछ औरों के लिए ---बहुत अच्छी पंक्तियां...और गहरा संदेश देती रचना।
dhanyavaad!