कठपुतली




 

ज़िन्दगी के खेल भी निराले हैं 

अब ज़िंदा हैं तो मौत आनी है 

रात है तो दिन को भी होना है 

रोने वाला कभी हँसता भी है 

धुप-छाँव से भरी ज़िन्दगी है 

ऐसे में तय करे कब क्या है 

क्या नहीं और क्या होना हैं 

सब सोचा मगर होता नहीं है 

ज़िन्दगी अपनी डोर उसकी है 


~ फ़िज़ा 

Comments

बहुत सुंदर
बहुत खूब।
Dawn said…
@अनीता सैनी ji, aapka behad shukriya meri rachna ko aapke sankalan mein shamil karne ke liye, Abhar!

@Anuradha chauhan ji, aapka behad shukriya meri rachnana ko pasand karne ke liye, Abhar!

@मन की वीणा ji aapka behad shukriya meri rachna ko pasand karne ke liye, Abhar!

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