आरम्भ


 

आज का दिन ठीक-ठाक ही था 

सूरज सर पर मीटिंग धड़ पर  था 

आहिस्ता से दिन गुज़र ही रहा था 

आलास सर चढ़ के चिल्ला रहा था 

थोड़ी धुप सेखी पंछी संग खेला था 

बहुत काम मगर दिल न मानता था 

हट पे अड़ा या जिद्द ही कर रहा था 

इस तरह आज मेरा दिन गुज़रा था 

सच कहूं तो बहुत अच्छा गुज़रा था 

कभी ऐसा भी दिन गुज़ार के देखो 

सर्व-संपन्न अपने दिल को सुनो 

एक दिन अपने मस्तिष्क को 

आराम दो !


~ फ़िज़ा 

Comments

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-०४-२०२१) को 'एक चोट की मन:स्थिति में ...'(चर्चा अंक- ४०३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सुन्दर रचना
बहुत सुंदर लिखा आपने , सार्थक है।
Amrita Tanmay said…
बेहतरीन लेखन ।
बहुत सुंदर रचना

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