ज़िन्दगी दौड़ रही है !
आज चौबीस साल हो गए घर से निकलकर
कभी सोचा न था कोई और जगह भी घर होगा
इंसान खानाबदोश है पशु-पक्षियों के समान
दाने की खोज में निकल पड़ता है घर से बाहर
मैं साहसिक कार्य हेतु दुनिया की सैर पर निकली
ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव ने सब कुछ सीखा दिया
कहते हैं किताब न मिले तो दुनिया की सैर करो
बहुत कुछ जीवन में ज्ञान यूँ ही मिल जायेगा
किताब भी पढ़ा और दुनिया भी घूमें क्या सीखा?
हर जगह इंसान पांच उँगलियों के समान ही है
सभी जगह अच्छे-बुरे होते हैं बस समझने की बात है
थोड़ा सा संयम और सहानुभूति से सब का हल है
आज ही के दिन टोरंटो की गलियों में पहुंची थी
और आज कैलिफ़ोर्निया में घर बसाकर ज़िन्दगी
दौड़ रही है !
~ फ़िज़ा
Comments
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 12-04 -2021 ) को 'भरी महफ़िलों में भी तन्हाइयों का है साया' (चर्चा अंक 4034) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
Renu ji aapka bahut shukriya aapne protsahan badhaya aur kavita par tippani bhi di, behad shukdiya !
Jigyasa ji aapka bahut bahut dhanyawaad
Abhar!
Veena ji bahut shukriya aapki tippani ka
Abhar!