बीज
बीज बनकर तू गिरा अब पेड़ बन गया
धरा से तू ऊगा है धरा में ही जायेगा
जानकर भी हमेशा देता सभी को साया
आसमां की ऊंचाई भाती उस ओर गया
ऊंचाई तक जाकर तनों को नीचे ले गया
जिस थाली में खाया उसका ऋण चुकाया
इतना ही नहीं अनजानों को भी छाया दिया
एक तू ही है जो इंसान नहीं इंसानियत है
सीखा कर भी इंसान इंसान न बन पाया
ऐ वृक्ष तुझे प्रणाम तू मरकर भी काम आया
अर्थियों के लिए तो ठंड दूर करने के लिए
तू देता रहा हर पल हर दम तू जलता ही रहा !
~ फ़िज़ा
Comments
@Nitish Tiwary ji, aapka bahut dhanyavaad , abhar
@जितेन्द्र माथुर Ji, bilkul sahi kaha aapne, dhnayavaad houslafzayee ka , ABhar!
@विकास नैनवाल 'अंजान' ji, sarthak baat kahi dhanyavaad protsahan dene ka, Abhar!
@Onkar ji: Dhanyavaad, Abhar!
@मन की वीणा ji, dhanyavaad, Abhar!