Monday, February 20, 2006

हम कहाँ के हैं इंसान....?

आज दिल कुछ बोझल सा है ये दिल भी कितना नादान है....जाने कब की लिखी बातें होतीं हैं और इस पर असर कर जातीं हैं ऐसा ही कुछ दिल का हाल है....वाकई में हम कहाँ के इंसान हैं...जो कभी किसी के बारे में सोचते ही नहीं आज ऐसे ही कुछ बातों को लेकर...एक दिल झंझोडने वाली कविता पेश ए खिदमत है....

उमर ढलती जा रही है
जिंदगी शरमा रही है
इस मकान की चौखट से
माँ ये गाना गा रही है
सामने लेटा है बचचा
और वो सुला रही है
बरतनों में सिरफ पानी
आग पर चढा रही है
बासी रोटियों के टुकडे
समझकर अमरित खा रही है
सामने बडा सा घर है
जिस से रोशनी आ रही है
खूब हंगामा मचा है
मौसगी बहार आ रही है
साज् पे थरकते लोग
मगरिब जिला पा रही है
हम कहाँ के हैं इंसान
समझ कयों नहीं आ रही है ?


~ फिजा

7 comments:

Tarun said...

अरे वाह एक ओर हिन्‍दी ब्‍लोग। सेहर अच्‍छा लगा आपका ब्‍लोग देखकर...अभी सब को खबर करता हूँ। नारद मुनि को भी।

kumarldh said...

is baar kuch gambhir ho giya.
koi tippni nahi.
gambheerta mere vyaktitva me bahut hi kam aati hai.

अनुनाद सिंह said...

हिन्दी ब्लाग-जगत में आपका आत्मीय अभिनन्दन !

ये कविता बहुत ही सरल और असरकारक है | अच्छी लगी |

अनुनाद

Dawn said...

@तरुण: वाह क्या बात है...बहुत अच्‍छा लगा आपको यहाँ देखकर...उम्‍मीद है आप आगे भी आते रहेंगे...
सेहर

@कुमार चेतन: आपकी बातें गंभीरता में भी हँसा देते हैं... टिप्‍पणी तो करनी ही होगी...आखिर हमारा मार्गदर्शन कौन
करेगा...आते रहिऐ..
सेहर

@अनुनाद सिंह: आपका स्‍वागत है.... सेहर में..कविता पसंद करने का बहुत-बहुत शुक्रिया..उम्‍मीद है आगे भी आप हमारा हौसला बढाऐंगें......आते रहिऐगा..
आपकी आभारी.....सेहर

Kaunquest said...

Gambheer vichaar..

PuNeEt said...

kaafi gehrai se likha hain

Dawn said...

@kaunquest - Puneet: Zindagi ko kareeb se dekhne ke mauqe baar baar nahi aate aur jab aate hein to bahut geharayee tak le jaate hein :)
shukriya yahan aakar padhne ka aur tippani dene ka
Khush rahein sada
:)

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

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