Tuesday, February 07, 2006

कौन हुँ मैं ?

कभी ऐसा हूआ है आपके साथ जब कोई...आपकी हुनर को, आपकी अदा और नेक नियती को पसंद करने लगता है तो वो आप से आपके धरम, भाषा और आढंबरी बातों के विषय में पुछने लगता है...? मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ...और मेरे मन में जो भी कशमकश थी उसे कुछ ऐसा रुप दिया....उममीद है बात की हकीकत को आप जानेंगे और उसकी विडंबना को मेहसुस करने की कोशिश आप करेंगें.... आपके राय की मुनंतजीर..... :)

भीड में युहीं हम टेहल रहे थे
ये सोच कर के हम अकेले हैं
चलते गऐ हम बस चलते गऐ
न जानते हुऐ के मंजर किधर है


मौसगी का तकाजा था जो
हम भी थे कुछ बेहके बेहके से
के अचानक से लगा जो हम अकेले से थे
कोई साथ हो लिया हाथ हमारा पकड के


इस दोसती को मेहसुस ही कर रहे थे
के भीड से ये आवाज आई
"कौन हो तुम, कया जात हो तुम
कहाँ से आये और कया चाहते हो तुम?"


अचानक ही सब थम सा कयों गया
ये जो लुतफ है इसे उठाने कयों न दिया
साकी की खुशी मना भी न सके
के "फिजा" ये सवाल उठ खडा हो गया


कया मैं ऐक इंसान नही हुँ?
कया सिरफ इतना नही है जरुरी?
इनही खयालात में हम
फिर खो गये भीड में अकेले हम!!!!


~फिजा

5 comments:

Kaunquest said...

Hello, Finally i get to read your shaayari.. bohath Khoob.. wah!

Hum tanhaa na chalthe to khud se kahaan milte
Chehron ke bheed mein, bhool aathe shakal apni...

kumarldh said...

khoob kahi

Manish Kumar said...

Hmmmmm darasal hum apni paridhi se bahar nikalne ki koshish nahin karte aur bahut kuch apni upbringing se huye purvagraha se grast ho jate hain. Aisa vyakti jab kisi ko apna dost baneyega to man mein ye bhav bhi use juroor rahega ki ye to meri bhasha, dharm ko manne wala hai.

Agar hum apne bare mein kisi ke man mein bhrama na utpanna hone dein to kuch hi sahi jo bhi mitra banenge wo jeewan paryant rahenge..
unki dosti ke aage na tumhari bhasha aade aayegi na tumhara dharm.

Tarun said...

Brilliantly done !!

Dawn said...

@kaunquest: बहुत बहुत खुशी हुई आप यहाँ तक आये तो सही :)
शुकरिया ..
शेर का जवाब:
कभी हमें भी साथ ले लिया होता
इतने बुरे भी नहीं पेहचान ने में हम ;)

आदाब

@kumar chetan: शुकरिया :)

@manish: बात जब internet world की हो तो बहुत सी बाधाऐं और बंदिशें होती हैं...और ये जरुरी नहीं की हर किसी से आप उस खास तरिके से राबता रखें....किंतु कुछ बातें पसंद आऐं तो उसे उसकी पहुँच तक ही रखना चाहिऐ
खैर...आपकी बात शायद अपनी जगह सही हो....
टिपणी का शुकरीया...

@tarun:सुसवागतम इस बलोग तक तशरिफ जो लाऐ....और अपने विचार पेश किये...
शुकरीया...आते रहियेगा....

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...