सर्द हवाओं ने फिर छेडी है जैसे
कल सुबह से ही बरसात अपनी ज़िद पर था और कारे-कारे घटा मानों तय कर के आऐं हों.... कल की सुबह वाकई रंगीन थी..ये बात और है के....रंगत को अमावस्या की हवा लग गई...;)....अर्ज किया है... एक तूफानी रात...बिजली की कडकडाहट तो साँय-साँय करती हवा मानो जैसे कुछ ठानकर आई हो............ सर्द हवाओं ने फिर छेडी है जैसे वही दिल के अरमानों को किसी की याद सिने में... आज भी धडक रही है ऐसे रेह-रेह कर तुझे बुलाती है.... आ ! फिर एक बार मुझे अपना बनाने के लिये आ ऐसे उसके आते ही ऐसा लगा जैसे सर्द हवाओं का झोंका आया एक तूफानी रात से भरी घनघोर बारिश में जैसे भीगी हुई जुल्फों से टपकता पानी ये कह रही हों जैसे झुम के बरसों बस भीग जाने दो आज मुझे ऐसे जब ठंड से पलकें खुलीं तो देखा तूफान तो था बारिश अब भी जोरों से बरस रही थी और मैं......बस भीग रही थी.... हाँ!!! तूफानी बारिश में भीग रही थी ऐसे!!!! ~ फिज़ा