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Showing posts from April, 2021

सहनशीलता !

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दिन का चैन खो गया कहीं  तो रातों की नींद घूम है कहीं  कहीं से रोशनी की उम्मीद है  तो सिर्फ अन्धकार की बातें हैं  कोई सूरत तो नज़र आये कहीं  कोई रास्ता हो जहाँ उम्मीद हो  दुआ न दवा से सिर्फ दिमाग से  हम-तुम इंटरनेट से साथ निभाएं  मगर घर से बहार न निकालें अब  घर पर रहकर पूरी करें दिनचर्या  कुछ सालों के लिए रहे दूर-दूर  शायद फिर वो दिन भी आये जब  गले-मिलकर मस्तियाँ करें सब  किन्तु अब संयम और सावधानी  इनका ही उपयोग करें हम सब  चलो कुछ धैर्य भी साथ रखते हैं  कुछ अपने लिए कुछ औरों के लिए  नमन! ~ फ़िज़ा   

करुणा

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  आज कहने को सुनने को  क्या रहा जब खबर सब  एक जैसी ही आ रही हो  जहाँ युद्ध में योद्धा लड़ते  आज हर कोई सैनिक बन  एक-दूसरे को सहारा दे रहा  वीर हैं वो जो अपना नहीं पर  कोविद-ग्रस्त मरीज़ों का सोचें  रिश्तेदारों को हटाकर खुद ही  क्रियाकर्म कर उनको विधि से  मुक्त कर रहे हैं  लड़खड़ाते हैं मेरे लफ्ज़ आज  इंसानियत और हैवानियत को  मुकाबला करते देख ! ~ फ़िज़ा 

बीज

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  बीज बनकर तू गिरा अब पेड़ बन गया धरा से तू ऊगा है धरा में ही जायेगा  जानकर भी हमेशा देता सभी को साया  आसमां की ऊंचाई भाती उस ओर गया  ऊंचाई तक जाकर तनों को नीचे ले गया  जिस थाली में खाया उसका ऋण चुकाया  इतना ही नहीं अनजानों को भी छाया दिया  एक तू ही है जो इंसान नहीं इंसानियत है  सीखा कर भी इंसान इंसान न बन पाया  ऐ वृक्ष तुझे प्रणाम तू मरकर भी काम आया   अर्थियों के लिए तो ठंड दूर करने के लिए  तू देता रहा हर पल हर दम तू जलता ही रहा ! ~ फ़िज़ा 

काश! कुछ कर पाते...

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  हर तरफ कोरोना का शोर है  हर तरफ वैक्सीन का भी नारा  कोई ये लो कहता तो कोई वो  कोल्हाहल सा मचा है हर तरफ  कोई मास्क पहनता है कोई नहीं  किसी को बहुत आत्मविश्वास है  कोविड नहीं होगा बस घूम रहे हैं  अपना नहीं औरों का ही सोचते  खुद बेहाल औरों का भी ये हाल   हर दिन साथियों के जाने की खबर  कोई कोविड से ग्रस्त हस्पताल में  मुझे मिले वैक्सीन अपराध सा लगे  मगर मैं फिर भी तो नहीं आज़ाद  दोस्तों के बारे में सोचूं तो उनको  वैक्सीन भी नहीं, दवा-दारू भी नहीं  मौत से लड़ते हुए तो किसी अपने को  कांधा दिए आँखों में आंसू ,लाचारी  धैर्य देते-देते अब खुद धैर्य को थामे  के जाओ नहीं छोड़कर साथ हमारा  तुम नहीं तो कैसे देंगे हम हौसला  एक-एक करके सभी छोड़े जा रहे   इस उम्र में जब सोचा मिलेंगे अब के  याद करेंगे स्कूल के मस्ती वाले दिन मगर अब श्रद्धांजलि देते थक गए हम  काश! कुछ कर पाते साथियों के लिए !!!!! ~ फ़िज़ा 

ख्वाब था..?

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  उसकी बातें जैसे मखमल के गेंद  सुनकर हो जाये गाल लाल-लाल  वो सामने नहीं फिर भी शर्म आये  वो कुछ भी कहे दिल डोल  जाए  उसकी बातें समय को थाम ले यूँ  और ले चला ख्वाबों की सवारी पे अन्धाधुन सफर पर मैं भी निकली  कुछ यहाँ-वहां की बातें और फिर  हँसकर गुलाल यूँ फेंक गया वो  हाथ से हटाने गयी तो खुल गयी  निंदिया ! ख्वाब था या हकीकत समझे न  सोचकर तो लगा सही हुआ था  फिर सबूत ढूंढा तो कुछ न मिला ! ~ फ़िज़ा 

आँखों ही आँखों से

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  आँखों ही आँखों से मिले थे  दूर-दूर ही थे मगर हर पल  नज़रों से होते रहे नज़दीक  संकोच झुकती नज़रों से  हौसलों से देखती वो नज़रें  कहीं तो एक चिंगारी जली  आँखों के रस्ते प्यार हो गया  देखो तो एक सपना सा लगा  क्यूंकि कोवीड के होते ये सब  मुनासिब ही नहीं नामुमकिन था  लेकिन हमने चेहरे नहीं आँखों से  दिल की गहराइयों को जाना  और आँखों ने सहमति दी कहा हाँ, मुझे प्यार है तुमसे  दूर थे मगर दिल से जुदा नहीं ! ~ फ़िज़ा 

कब होगी वो सुबह...

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  एक वक़्त ऐसा भी होता था  जब सुबह का इंतज़ार रहता  अब डर लगता है के सुबह हो  तो जाने क्या खबर सुन ने मिले  ज़िन्दगी अप्रत्याशित हो चली है  कोवीड महामारी ने सभी को  असहाय लाचार बेबस मायूस  दूभर कर दिया जीना सभी का  सुरक्षा उसका पालन करने से  कतराते वक़्त आते-आते देखो  जाने-अनजाने लोग गुज़र गए  बिना इलाज़ ही  मृत्यु हो गयी  अनगिनत जवान-बूढ़े लोगों की  ये दृश्य सपने में भी न देखा कभी  ऐसा भयानक समय कब थमेगा ? कब होगी वो सुबह जब ये न होगा ? ~ फ़िज़ा 

यादों के सफर में

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  मुझे फिर कोई ले चलता है मेरे लड़कपन की ओर  बातों से तो कभी तस्वीरों से जिज्ञासा बढ़ता कभी  हालत समझो ज़रा दूर अपने देश से उन दिनों से भी  कभी सोचूं उसी काल में रहा लूँ ज़रा कुछ पल के लिए  फिर इस पल की इन दिनों की सोचूं तो फिर क्या करूँ  काश! पल रुक जाते जब हम चाहते थम जाते वो पल  फिर उस पल में लौट पाते और फिर से चलते वहां से  चलते-चलते पहुँचते आज तक देखते कैसा होता सब  यादों के पल फिर से लड़कपन की ओर खींचते और  हम उसी लड़कपन में नया कोई निर्णय लेकर चलते   यूँहीं ज़िन्दगी के ख्वाब आते-जाते देख खुश हो जाते  ~ फ़िज़ा 

बचा लो ...!

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  हम सब भिन्न-भिन्न प्राणी हैं जगत में  और भिन्न-भिन्न हैं वस्त्र कुछ पहनते  भिन्न-भिन्न है हमारा भोजन और पसंद  जो भी हो सबकुछ मिल जाता हैं यहाँ  भिन्नता कभी नज़दीक तो दूर करती है  हम ये भी भूल जातें हैं के हम कर्ज़दार हैं  फिर भी स्वार्थी और मनमानी करते हैं  काश! हम ये समझते  एक पृथ्वी ही है हमारे बीच जो आम है  क्या उसे हम मिलकर बचा सकते? ~ फ़िज़ा 

कठपुतली

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  ज़िन्दगी के खेल भी निराले हैं  अब ज़िंदा हैं तो मौत आनी है  रात है तो दिन को भी होना है  रोने वाला कभी हँसता भी है  धुप-छाँव से भरी ज़िन्दगी है  ऐसे में तय करे कब क्या है  क्या नहीं और क्या होना हैं  सब सोचा मगर होता नहीं है  ज़िन्दगी अपनी डोर उसकी है  ~ फ़िज़ा  

एक एहसास

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  धड़कनों की आवाज़ सुनो कभी  तारों सी बज उठती है  संगीत  यादों से भरी बातें संगीत के बोल  जिन्हें पढ़कर बनाये प्यार की धुन  कभी ये तेज़ बजतीं तो कभी आहें  समुन्दर पर हिंडोलती लहरें जैसे  यादों की उड़नखटोले में बसर कर  दुनिया की सैर कर मानों एक ख़ुशी  जैसे मैं कल फिर से कॉलेज हो आयी  यादें, धड़कन, बातें, मुलाकातें, प्यार  सब कुछ तो था वहां जहाँ पढ़ रहे थे  एक एहसास हवा के झोंके सा आया  ~ फ़िज़ा 

मोहब्बत ज़िंदा रहती है

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  उम्र गुज़र रही थी वक़्त के साथ साँझा कर रहे थे  तीस साल गुज़रा हुआ पल उठके सामने आगया  कहीं से कोई उम्मीद या खबर उन दिनों की नहीं थी  तस्वीरों से यादों के लड़ियों से वो पल याद दिलाये  न उसने हमसे कहा और अनजान हम थे  आज तक कोई दिल ही दिल में हम से मोहब्बत कर रहा था  हर अदा पर वो थे फ़िदा मगर हिम्मत न थी कहने की  शर्म-लाज दोनों तरफ थी और बात दिल में ही रह गयी  वक़्त के साथ सबकुछ बदलता है प्रकृति का नियम है  फिर भी दिल में उस मोहब्बत को लिए घूमना अब तक  सही दीवानगी है 'फ़िज़ा' किस अनजानेपन की है सजा  मोहब्बत ज़िंदा रहती है मगर ये सही हो, ये ज़रूरी नहीं ! ~ फ़िज़ा 

कभी वो पडोसी हुआ करता था ...

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  आज सवेरे सवेरे खबर सुनी  कोई जानकार जो रोज़-रोज़  गुड मॉर्निंग और गुड नाईट के  व्हाट्सप्प मेसेजस भेजते कभी  थकता न था, पर आज के बाद  कभी भी वो मैसेज नहीं करेगा   उसे कोरोना ने जब्त कर लिया  कभी वो पडोसी हुआ करता था  जाने-अनजाने कितनी बातें हुईं  जो सिर्फ यादें बनकर रह गयीं  आखिरी वीडियो जो उसने भेजा  वो कोरोना की स्कीम वाली थी  आज की खबर सुनकर ऐसा लगा  मानों वो ये संदेशा दे गया जाते खुश रहो जिस हाल में भी हो  कोरोना अपनों से दूर ही करेगा  संभलकर रहो दोस्तों ये जानलेवा है  सुरक्षित रहो वर्ना कोरोना आजायेगा  मेरी श्रद्धांजलि इन पंक्तियों द्वारा  अच्छा इंसान था वो जो अब नहीं है ! ~ फ़िज़ा 

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं रिया

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 यूँही वक़्त नहीं गुज़र रहा जनाब  समय के साथ दिन महीने साल भी  गुज़रते पलों की एक यादगार लड़ी  सजाते-सजाते ये ख्याल भी न रहा  कब कली से फूल बन गयी मेरी रिया  बच्ची तो बच्ची है कहना तो सही भी है  मगर बच्चे तो नहीं मानते या समझते  अरमान तो यही है फूलो-फलो हरदम   ज़िन्दगी जियो मगर अपने दम पर  सही-ग़लत जो दिल को ठीक लगे  वही राह पकड़ना गर फैसला कहीं  चूक गया तो सबक ज़रूर सीखना  पश्चाताप न हो इसका ख्याल रखना  जीवन एक है इसे भरपूर जीना हमेशा  किसी बात पर रोना आये तो आँसू  बहा देना मगर दिल को समझा लेना  गर किसी बात पे हंसी आजाये तो  सबके संग मिलकर हंसना हँसाना  भेद-भाव किसी से न करना और  जाती-धर्म के चक्करों में न पड़ना  दिल से इंसानियत का धर्म पालना  बस इतनी सी है ज़िन्दगी इसीलिए  सोचकर चुनना आंसू और ख़ुशी कैसे बिताना है और कैसे जीना है  ज़िन्दगी आइस क्रीम की तरह है  समय के साथ हो तो चखने का मज़ा  वर्ना पिघल जाये तो उसे पीने की सजा  जन्मदिन की हार्दिक शुभकामना...

गुज़रा ज़माना !

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  याद आता है मुझे गुज़रा ज़माना  गुज़रे पल और गुज़री कहानियां  वो सड़कें वो माहौल और वो लोग  अपने अल्हड़पन पर आता है तरस  तो कभी लगता है वही सब ठीक था  गर वैसा सब नहीं होता तब ज़िन्दगी  वो लोग माहौल तो आज ये न होता  गुज़रे पलों के उपजे बीज जी अब  मैं फसल के रूप में काट रही हूँ ख़ुशी  ज़िन्दगी हसीन है गुज़रे को देख लगता है  यहाँ से देखूं तो सुकून है कोई खेद नहीं  गुज़रा ही सही सार्थक है अपनी जगह  एक एहसास से भरी पोटली है संग मेरे  गुज़रा ज़माना ! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी

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  ज़िन्दगी कभी एक इत्तेफाक है तो  कभी-कभी ये सेहमति भी है ज़िन्दगी  जब ज़िन्दगी ख़त्म सी दीखती है तब  एक सुराग रौशनी की चली आती है   ज़िन्दगी दूभर हो सकती है बरसों तक  संयम और धैर्य राहत को राह दिखाते हैं  शायद ऐसा ही कुछ हुआ था आज जो  फुर्ती सी आगयी फिर ज़िन्दगी एक बार  वाक़ई! ज़िन्दगी एक इत्तेफाक ही तो है ! ~ फ़िज़ा 

फिर एक बार

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  वसंत बहार पर नूतन वर्ष के दिन   फिर एक बार बचपन याद आया  वो रात ही से माँ का थाली सजाना  सब्जियों, फलों अमलतास से सजे  कुछ धान्य, नारियल,सोना, चांदी  रुपये, नूतन कपडे, कृष्णा की मूर्ति  दिया और आइना सबकुछ थाल में  प्रातः रवि के आने से पहले पापा  मेरी आँखों पर हाथ रख ले जाते  थाल के समक्ष और फिर हाथ हटाते  आईने में अपना चेहरा देखते और  और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते  पापा 'विशु' की शुभकामना देते  और हाथ में कुछ रुपये थमाते  जिसे बड़ों का आशीर्वाद मानकर  उनके पैरों को छूकर गले लगते  कितनी सादगी थी उस ज़िन्दगी में  अमलतास के फूलों ने दिल लुभाया  तब से आजतक बेहद प्रिय हैं मेरे   वसंत ऋतू की इस श्रंखला में मेरा  बचपन फिर एक बार संवर उठा ! नूतन वर्ष की शुभकामनाएं आप सभी को ! ~ फ़िज़ा 

खुशबु बहारों की

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  बहारों का मौसम है रंगों में घुल जाओ  खुशबु बहारों की यूँ  फूलों में रम जाओ  फूलों की बात हुई वहीँ भँवरे भी चले आये   मोहब्बत है मिलन के आसार नज़र आये  गुंजन गूंजने लगे फूलों पर मंडराने लगे  मोहब्बत की दास्ताँ यूँ ही  खुशबु  फैलाती है  बहारों का मौसम है रंगों में घुल जाओ  खुशबु बहारों की यूँ  फूलों में रम जाओ  ~ फ़िज़ा 

काश!

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  काश! काश जब वो पहली बार चिल्लाकर  बात कर रहा था तब रोक लेती उसे  या हाथ उठाकर मारने आया तभी  उसकी मर्ज़ी और मेरी एक नहीं थी  शायद, मुझे जान लेना चाहिए था  की उसका ग़ुस्सा ठीक नहीं है या  उसका तरीका और उसकी सोच  सही नहीं है मेरे हित के लिए काश  काश मैं तब संभल गयी होती तो  मुझे यूँ फ़ना नहीं होना पड़ता था  जान लेना था लोग तमाशा पसंद हैं  अपनी रक्षा आप स्वयं करना है  काश! ये जान लेती और उस पर   भरोसा न कर अपने पर भरोसा  ज्यादा करती तो शायद मैं उन  वीडियो और कैमेरा में सबूत  बनकर नहीं रहा जाती काश! काश! ये दुनिया जीवन और   उसका का मेहत्व जान पाती  किसी स्त्री पर हाथ उठाने से पहले  उन्हें उनकी अपनी माँ नज़र आती  काश! काश ! काश! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी दौड़ रही है !

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  आज चौबीस साल हो गए घर से निकलकर  कभी सोचा न था कोई और जगह भी घर होगा  इंसान खानाबदोश है पशु-पक्षियों के समान  दाने की खोज में निकल पड़ता है घर से बाहर  मैं साहसिक कार्य हेतु दुनिया की सैर पर निकली  ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव ने सब कुछ सीखा दिया  कहते हैं किताब न मिले तो दुनिया की सैर करो  बहुत कुछ जीवन में ज्ञान यूँ ही मिल जायेगा  किताब भी पढ़ा और दुनिया भी घूमें क्या सीखा? हर जगह इंसान पांच उँगलियों के समान ही है  सभी जगह अच्छे-बुरे होते हैं बस समझने की बात है  थोड़ा सा संयम और सहानुभूति से सब का हल है  आज ही के दिन टोरंटो की गलियों में पहुंची थी  और आज कैलिफ़ोर्निया में घर बसाकर ज़िन्दगी  दौड़ रही है ! ~ फ़िज़ा 

दोस्ती

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  कई दिनों से लूटमार चल रहा था  सोच कर देखा पर पता नहीं चला  एक दिन अचानक चुपके से देखा  दोनों हाथों से बटोर कर खाते हुए  धप! आवाज़ कर उसे भगाया था  बार-बार नज़र रख कर उसे डराया  कुछ दिन बाद देखा उसे पेड़ पर जब  लग रहा था मानों वो शर्मिंदा है खुद से  सोचा भला प्रकृति से क्या भेद-भाव  अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है  मगर आँखों की चमक से मोहित करता है  कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ  छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी ! ~ फ़िज़ा 

आरम्भ

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  आज का दिन ठीक-ठाक ही था  सूरज सर पर मीटिंग धड़ पर  था  आहिस्ता से दिन गुज़र ही रहा था  आलास सर चढ़ के चिल्ला रहा था  थोड़ी धुप सेखी पंछी संग खेला था  बहुत काम मगर दिल न मानता था  हट पे अड़ा या जिद्द ही कर रहा था  इस तरह आज मेरा दिन गुज़रा था  सच कहूं तो बहुत अच्छा गुज़रा था  कभी ऐसा भी दिन गुज़ार के देखो  सर्व-संपन्न अपने दिल को सुनो  एक दिन अपने मस्तिष्क को  आराम दो ! ~ फ़िज़ा 

क्या सही?

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  आज का दिन कैसा गुज़रा ये सोचना सही  मगर खोये वक्त को याद करना कितना सही? रोज़-रोज़ ये सोचना आज ये करना है आज वो  रोज़ वक्त गुज़र जाने के बाद सोचना कितना सही? आलस की हवा गुज़र रही है आजकल यहाँ-वहां  बड़े-बड़े काम करने की प्रतिबद्धता कितना सही ? जीना मरना एक समान ये जीवन का खेल  मगर बची ज़िन्दगी तनाव में बिताना कितना सही? प्रोत्साहन और उसकी प्रतिक्रिया सभी अच्छा है  ऐसा भी प्रोत्साहन जो आराम न दे कितना सही ? ~ फ़िज़ा 

कैलिफ़ोर्निया पॉपी

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  गुल खिले हैं बाग़ में  बाग़ में तो गलियों में सिर्फ गलियों में नहीं  खेतों खलियानों में  केसरी चादर ओढ़े  दुल्हन सी लगती है  धरती कैलिफ़ोर्निया की  लोग बारातियों जैसे  इर्द-गिर्द घूमें उसके  तस्वीर खेंचके लगाए  फेसबुक में ये कहकर  हम यहाँ भी हो आये  कुछ भी कहा लो यारों  कैलिफ़ोर्निया पॉपी की  बात ही है निराली जैसे  जब खिले फूलों की  यूँ रंगों से भरी फुलवारी  ~ फ़िज़ा 

चुनाव

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  सुना है आजकल चुनाव चल रहा है  जानकर मैने भी उत्सुकता जताई  किसे वोट दीजियेगा इस बार आपने  जानते थे के बापू के समर्थक रहे हमेशा  इस बार किसे वोट देने का इरादा है ? जवाब कुछ इस तरह से आया वहां से  वोट  कोई पार्टी नहीं हम किसी पार्टी के नहीं  अब तक जिसने सब ख्याल रखा हमारा  बिजली पानी और सड़क घर तक लाया  साफ़ सुथरे अस्पताल तो दवाइयाँ मुफ्त  हर मांग पूरी करने वाले को ही वोट देंगे  ढोंग रचाने आएंगे बहुत देंगे कई झांसे  फंसना न मगर अस्थायी एहसानो पर  अब तक जिसने संभाल रखा लोगों को  निस्वार्थ जरूरतें पूरी कर नेतृत्व संभाला  क्यों न मोहर उसी पर लगे इस बार भी  चुनकर लाओ अपना वही मुख्या मंत्री ! ~ फ़िज़ा 

पत्थर दिल

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  हूँ तो बहुत बलवान मगर  दिल भी यहीं कहीं रहता है  नादान सा मुझ सा बावला  मगर चाहता भी क्या प्यार है  यूँ न मेरे हुलिए पर जाओ तुम  दिखता हूँ मैं कठोर मगर सबको  हूँ मैं दिल से अच्छा और बेचारा  प्रकृति की लीला समझो या फिर  किसी के अन्याय का हथोड़ा मारा  दर्द न दिखा सका मुंह खुला रह गया ! ~ फ़िज़ा 

शहर

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  मेरा शहर जाने क्यों  आज भी बरसों बाद  नाम कहा सुना जाए तो  दिल में एक अपना सा  एक अपने हक़ से जुड़ा  वो शहर जहाँ बचपन  लड़कपन से जवानी तक  आज भी गलियां सड़कें  मानों राह तखतीं हो जैसे  वाहनों से लेकर इंसान  सभी के चेहरे नज़र आते  अमृता प्रीतम के शहर से  बिलकुल अलग मेरा शहर  जैसे दिल एक पल के लिए  जाना चाहे वहीं फिर एक बार  बस एक बार फिर सबकुछ  वैसा उस शहर सा हो जाये  मेरा शहर जो अब बदल गया ! ~ फ़िज़ा  

मन की ख़ुशी

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  तन मन का सुख है मन से  तन का सुख भी है मन से  जब मन ही न रहे तो सुख कैसे? तन को मिले सब सुख-समृद्धि  मन को मगर न भाये एक पल भी  जब मन ही न रहे तो सुख कैसे? मन को मिले सब मन चाहा  तन बेशक है अब मुरझाया  मगर अब भी सुखी है वो काया ! तन से न तोल खुशियां कभी  मन की ख़ुशी हो कितनी भारी  रखती हमेशा है खुशियों की क्यारी !! फ़िज़ा