Saturday, April 08, 2023

बांसूरीवाले बाबा


 जाने किस हाल में होगा वो ,

जाने क्या होगा उसका आगे ,

वो खुद भी नहीं आया मर्ज़ी से,

जब लाया तो क्यों ख्याल न रखा ,

वो आज लाचार है बेबस भी ,

परेशान है मेरे साथ ही क्यों ऐसा?

औरों सा सब कुछ मेरा क्यों नहीं?

संकट में पला एक बच्चे का कमरा ,

उस कमरे में एक खिड़की खुली सी ,

झांक कर देखा तो क्या 

बांसूरीवाले बाबा !

~ फ़िज़ा 

3 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Onkar said...

बेहतरीन रचना

कविता रावत said...

बांसूरीवाले बाबा ....

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...