Saturday, April 29, 2017

क्यों न जाएं हस्ते-हस्ते उस पार हम भी?


उसने कई बार अपनाया और ठुकराया भी 
दौर में कई बार कोई जिया और मरा भी !

ज़िन्दगी  के मायने कोई समझा या नहीं भी 
तोहमतें रोज़ नयी और होते रहे शिकार भी !

ऊंगलियां उठाने के मौके छोड़ता नहीं भी 
समाज की बातें करते समतावादी की भी !

हादसे हो जाते हैं, बर्बाद नज़र आता भी 
जड़ों की तलाश न करते ठहराते दोषी भी !

उसने कई बार अपनाया और ठुकराया भी 
इस वजह से खुद को पायी और खोयी भी !

बहुत दूर तक सफर था साथ न होकर भी 
सोचो कौन देता है आखिर तक साथ भी ?

जब आये थे रो कर इस जहाँ में हम सभी 
क्यों न जाएं हस्ते-हस्ते उस पार हम भी?

~ फ़िज़ा

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