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Showing posts from April, 2017

मुझे पढ़ने वाले कभी सामने तो आओ...!

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मुझे पढ़ने वाले कभी सामने तो आओ  आइना हूँ दिल का पढ़लो कभी ये चेहरा कब तक रहोगे पढ़ते मेरा छिपकर कलाम   दे दिया करो दाद एक टिपण्णी का सहारा   जान तो लूँ मैं भी है दिल में वो  आग  अब भी  ज़िन्दगी जहाँ भी ले जाए इस दिल में है सदा  मोहब्बत की नहीं नुमाइश ख़ुशी के हैं एहसास  मुझे पढ़ने वाले कभी सामने तो आओ  कभी सामने तो आओ ! ~ फ़िज़ा 

कुछ लोग मोहब्बत करके... :)

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कुछ लोग मोहब्बत करके  समझते हैं किया एहसान  अपने अंदर झांकते कम हैं  चाहते हैं दूसरा रहे मेहरबान ! कुछ लोग मोहब्बत करके  हो जाते हैं शायद  बर्बाद  मोहब्बत के बदले मोहब्बत  सिर्फ अपने मतलब की बात ! कुछ लोग मोहब्बत करके  बन जाते हैं सबसे महान  फिर करते रहते हैं दिखावा  बनकर देवदास का गुनगान ! कुछ लोग मोहब्बत करके  सच में हो जाते हैं आबाद  नहीं गिला रेहता कोई शिकवा  जब चाहा नहीं कोई सवाब ! कुछ लोग मोहब्बत करके  मनाते शोक जीवनभर का   नाउम्मीद, बर्बादी का जश्न  परोसते गली ठेलेवाले जैसा ! कुछ लोग मोहब्बत करके  खुश हो जाते हैं संसार  आज मिले हैं तुमको  कब ज़िन्दगी करदे इंकार ! ~ फ़िज़ा 

क्यों न जाएं हस्ते-हस्ते उस पार हम भी?

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उसने कई बार अपनाया और ठुकराया भी  दौर में कई बार कोई जिया और मरा भी ! ज़िन्दगी  के मायने कोई समझा या नहीं भी  तोहमतें रोज़ नयी और होते रहे शिकार भी ! ऊंगलियां उठाने के मौके छोड़ता नहीं भी  समाज की बातें करते समतावादी की भी ! हादसे हो जाते हैं, बर्बाद नज़र आता भी  जड़ों की तलाश न करते ठहराते दोषी भी ! उसने कई बार अपनाया और ठुकराया भी  इस वजह से खुद को पायी और खोयी भी ! बहुत दूर तक सफर था साथ न होकर भी  सोचो कौन देता है आखिर तक साथ भी ? जब आये थे रो कर इस जहाँ में हम सभी  क्यों न जाएं हस्ते-हस्ते उस पार  हम भी? ~ फ़िज़ा

जीने की राह है आज़ादी जब ...

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आया तो हर कोई यहाँ बेमर्जी  जैसे सिर्फ काटने कोई सजा  क्यूंकि जाने कितने बेगैरत यहाँ  मिल जाते हैं देने सिर्फ सजा ! औरों को सजा देना, हैं इनकी जीत  औरों की गनीमत है जो सहते हैं  वर्ना कौन यहाँ निभाने वास्ते है  जब आये बेमर्जी तो क्यों सहें  बेवजह रिश्तों के नाम की बलि  चढ़ते -चढ़ाते निकल ही जाना है  काहे नहीं निकल पड़ते आवारा  जीने की राह है आज़ादी जब  तो ज़िंदादिली से जियें और  जो रेहा जाएं रोते -संभलते हौसला देके निकल जाएं !! ~ फ़िज़ा 

तब आयी एक नन्ही कली...

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जहां में थी जब मैं अकेली  तब आयी एक नन्ही कली  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! बस यकीन था खुद पर  चलना,सफर गर ज़िन्दगी  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! तो साथ में हो मेरी सखी  छोटी थी मेरी राजदार मगर  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! हर सुख-दुःख में निभानेवाली  मेरी नन्ही कली, चंचल मतवाली  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! कभी हम ज़िंदादिली सीखाएं  तो कभी वो हमें सीखाएं  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! है तो मेरी ही विस्तार  मगर मैं मुड़कर देखूं पीछे  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! अपनी उम्र न कभी गिनी मैंने  कब हो गयी ये फूल मेरी कली  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! फिर सोचूं क्यों मैं गिनूँ साल  अब तो है मेरी बराबर की सखी  सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली ! ~ फ़िज़ा 

जीवन का नाम है सिर्फ चलना !

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उसके अपने आज़ाद ख्याल थे  फिर भी वो सिमटी हुई दुनिया के  उसूलों पे रहने लगी थी मगर फिर भी  जीने की चाह उसके अंदर दबी थी ! क्या उड़ना इतना मुश्किल है? या ऐसा सोचना भी पाप है?  और ऐसा सोचना कौन तै करता है? क्यों कोई आज़ाद नहीं इस संसार में? जब वो आया नहीं किसी दायरे में? मैं हूँ एक ज़िन्दगी, जीना चाहती हूँ  अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी ! क्यों कोई रोके या टोके मुझे ? कोशिशें लाख करूँ मैं फिर भी  गर कोई बर्बादी की तरफ ही बढे  तब छोड़ भी देना चाहिए ये ज़िद  रहने दो बिन क्यारियों के सबको  के ज़िन्दगी का नाम है आज़ादी ! ज़िन्दगी है जिंदादिलों की! जियो गर कोई साथ दे या न दे  ज़िन्दगी, तू जीने के लिए ही है आयी  तो जियो ख़ुशी से ! तबाह कर हर उस वहम को उस  रिवाजों को और हर दया को  जो रोके हैं तुझे किसी बांध की तरह  क्योंकि तेरा काम है बेहना और  जीवन का नाम है सिर्फ चलना ! चलते जाना! न रुकने का नाम है  ज़िन्दगी!!!! ~ फ़िज़ा