Friday, July 22, 2016

क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?


आज यूँ ही बहुत देर तक सोचती रही 
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां 
जहां मैं जाना चाहूँ !
कितनी बेड़ियां हैं 
पैरों पर कर्त्तव्य के 
तो हाथ बंधे हैं 
उत्तरदायित्व में 
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां !
पूछते सभी हरदम 
क्या करना चाहोगी 
गर मिला जो मौका 
सोचने से भी घबराऊँ 
क्यूंकि दाना-पानी 
खाना -पीना जीवन की कहानी 
फिर दिल की रजामंदी 
कैसे होगी पूरी 
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां 
जहाँ जरूरतों में 
बाँटू प्यार -मोहब्बत 
दूँ मैं औरों को हौसला 
दो निवाला मैं भी खाऊँ 
दो उनको भी दे सकूं 
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां 

~ फ़िज़ा 

3 comments:

Samskritam-Subhashitam संस्कृतम्-सुभाषितम् said...

अक्सर यही खयाल मुझे भी झंझोढता है कि-
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहां मैं जाना चाहूँ... दिल को छू गयी आपकी कविता

Samskritam-Subhashitam संस्कृतम्-सुभाषितम् said...

अक्सर यही खयाल मुझे भी झंझोढता है कि-
क्यों मैं हूँ यहाँ? क्यों?
क्यों नहीं मैं हूँ वहां
जहां मैं जाना चाहूँ... दिल को छू गयी आपकी कविता

Dawn said...

Shukriya kavita padhne aur apni tippani yahan mere sang baant ne ke liye :)

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...