Friday, July 01, 2016

अक्षरों से खेलते-खेलते ...!


अक्षरों से खेलते-खेलते 
कब ये शब्द बन गए 
पता ही न चला! 
शब्दों की लड़ियों ने 
जाने क्या नए मायने 
सीखाए!
मैं अक्षरों से खेलती रही 
शब्द मेरे संग खेलते रहे 
यूँ ही !
जाने क्या सोचकर 
वो मुझ से दिल लगा बैठे 
मैं भी यूँ ही !
अांखमिचोली में कब 
एक-दूसरे के हो गए 
पता ही नहीं !
किसी ने कहा पद 
किसी ने कविता 
जाने क्यूँ ?
सोचते-सोचते शाम 
ढल चुकी फिर न सोचा 
जब चांद निकल अाया !!

~ फ़िज़ा 

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