धोखा अकसर हो जाता है, कभी नादानी में तो कभी अंजाने में... जो भी हो धोखा तो धोखा है.... :)
पेहली नज़र में दिल का खोना
जा़लिम ये किस कदर का धोखा
बातें ही मुसलसल हुईं थीं
फिर खत्म हुआ सब्र दिल का
जा़लिम ने चल दिया अपनी चाल
रेह गया दिल अब स्रिफ रफि़क का
रफ्ता-रफ्ता दिल करने लगा इक़रार
अब तो जैसे रकि़ब हुआ है मेरा हाल
उस से इज़हार-ए-मुहब्बत में
रक्स-ए-ता-उस दिल हुआ जाता
रग-ए-जान में मेरे जैसे तुम बसे हो
रघ़बत सी अनंजुमन में कोई बस जाता
रफि़क = friend
रकि़ब = enemy
रक्स-ए-ता उस = dance of the peacock
रक्स-ए-जान = in my viens of my life
रघ़बत= strong desire, pleasure
~ फिजा़
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
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Garmi
Subha ki yaatra mandir ya masjid ki thi, Dhup se tapti zameen pairon mein chaale, Suraj apni charam seema par nirdharit raha, Gala sukha t...
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औरत को कौन जान पाया है? खुद औरत, औरत का न जान पायी हर किसी को ये एक देखने और छुने की वस्तु मात्र है तभी तो हर कोई उसके बाहरी ...
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फिर नया साल आया वोही पुराने सिलसिले मास्क टीके बूस्टर संग उम्मीदों से भरा नया साल कोशिश अब भी वही है खुश रहो, सतर्क रहो नादानी से बच...
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जिस बात से डरती थी जिस बात से बचना चाहा उसी बात को होने का फिर एक बहाना ज़िन्दगी को मिला कोई प्यार करके प्यार देके इस कदर जीत लेता है ...
2 comments:
wah mohtarma, aap ka to urdu me acha dakhal hai.
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connexion impossible
Aapke shoutbox ki lag gayi
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