जाना! सुबह हो गई...
बहुत दिनों बाद कुछ लिखने की आस जागी, ठीक उसी तरह जिस तरह खेतों में अँकुर खाद, पानी और रवि की किरणों
से प्रज्जवलित हो उठतीं हैं। प्रातःकाल, स्नान लेते वक्त कुछ बातें अकस्मात ही मन कि आँगन में खलबला उठीं...
बातें जो शब्द बनकर ध्यान में विचरण करने लगीं...बस दिल उन्हीं ख्यालों को पिरोने लालायित हो उठा...
इस नाचीज़ की ये एक कृति कुछ इस तरह पेश है....
कल रात कुछ थकीं-थकीं सी थीं
और उनकी बाहों में नींद का आना
उषा की लालिमा चारों ओर फैल चुकीं थीं
फिर भी मैं नींद की
गहराईयों से लिपटी पडी थीं
इतने में उनका आना
मानो एक किरण बनकर
मुझे नींद की गोद से उठाना
और प्यार से केहना -
जाना! सुबह हो गई...
ये लो कौफी का ये प्याला !
मानो, मेरी सुबह रोशन हो गई
उनके प्यार की खुश्बू
मेरे दिन को मेहका गई
मैंने धीरे से पलकों के किवाड़ों को
खोलने की कोशिश की...
मानो, दिल और नींद की असमंजस में
और इसी द्वंद में फँसी रही...
आज भी नींद की खुश्क वादियों में
फि़जा़ बनकर मेहकती रही..
~ फि़जा़
से प्रज्जवलित हो उठतीं हैं। प्रातःकाल, स्नान लेते वक्त कुछ बातें अकस्मात ही मन कि आँगन में खलबला उठीं...
बातें जो शब्द बनकर ध्यान में विचरण करने लगीं...बस दिल उन्हीं ख्यालों को पिरोने लालायित हो उठा...
इस नाचीज़ की ये एक कृति कुछ इस तरह पेश है....
कल रात कुछ थकीं-थकीं सी थीं
और उनकी बाहों में नींद का आना
उषा की लालिमा चारों ओर फैल चुकीं थीं
फिर भी मैं नींद की
गहराईयों से लिपटी पडी थीं
इतने में उनका आना
मानो एक किरण बनकर
मुझे नींद की गोद से उठाना
और प्यार से केहना -
जाना! सुबह हो गई...
ये लो कौफी का ये प्याला !
मानो, मेरी सुबह रोशन हो गई
उनके प्यार की खुश्बू
मेरे दिन को मेहका गई
मैंने धीरे से पलकों के किवाड़ों को
खोलने की कोशिश की...
मानो, दिल और नींद की असमंजस में
और इसी द्वंद में फँसी रही...
आज भी नींद की खुश्क वादियों में
फि़जा़ बनकर मेहकती रही..
~ फि़जा़
Comments
"मैंने धीरे से पलकों के किवाड़ों को
खोलने की कोशिश की...
मानो, दिल और नींद की असमंजस में
और इसी द्वंद में फँसी रही..."
बहुत सुंदर संजोया है विचारों को, बधाई.
समीर लाल
cheers
उडन तश्तरी: aapki houslafzayee ka bahut bahut shukriya...aate rahiyega
adaab
Lagta hai ke kaam se chutti leni padegi
koi teeka tippni nahi
waise teeka tippni kaahe naahi..? itni buri hai kya ?:(