बूँदें
कल से बडी ज़ोरों से बारिश हो रही है...ऐसी घमासान बारिश के बस पूछो नहीं।
मन तो करता है, जैसे निकल पडें बरसात में ऐसे बिना बरसाती और छाते के फिर जो हो सो हो....
बारिश की बूँदें जब
टप-टप करके गिरतीं हैं
कितने सुहाने और मीठे
ऐहसास ये जगातीं है।
मोतियों सी ये बूँदें
मन पर चंचल वार करतीं हैं
आवारा बादल की भाँति
मन, सुहाने पल में खो जाता है।
कितने ही पल में जी उठती हुँ
हर बूँद जब मिट्टी से जा मिलती है
मेरे भी चंचल मन में
इंद्रधनुष सी रंगत भर देतीं हैं।
छोटी-छोटी बूँदों जैसे उनकी बातें
मन के ख्यालों में सौ बीज हैं बोतीं
उन बीजों को सिंचने के
नये-नये हल ढुंढ निकालती।
कब बूँदों जैसे मैं मिल जाऊँ
दरिया के सिने से लग जाऊँ
उन के ही रंग में रंग जाऊँ
कैसा जादू कर देतीं हैं।
सावन के ये बरसाती बूँदें
कहीं हैं ये उमंग लातीं
कहीं ये सुख-चैन ले जातीं
दोनों ही पल सबको सताती।
कुछ मीठे तो कुछ खट्टी यादें
हर एक का मन ललचातीं
ऐसी ही कुछ सपने बुनने
वो कुछ पल हमको दे जातीं।
एक उषा की किरण जैसे
सबके मन में विनोद हैं लातीं
कितने ही सच्चे और मीठे
जीने की हैं राह दिखाते।
~ फि़जा़
मन तो करता है, जैसे निकल पडें बरसात में ऐसे बिना बरसाती और छाते के फिर जो हो सो हो....
बारिश की बूँदें जब
टप-टप करके गिरतीं हैं
कितने सुहाने और मीठे
ऐहसास ये जगातीं है।
मोतियों सी ये बूँदें
मन पर चंचल वार करतीं हैं
आवारा बादल की भाँति
मन, सुहाने पल में खो जाता है।
कितने ही पल में जी उठती हुँ
हर बूँद जब मिट्टी से जा मिलती है
मेरे भी चंचल मन में
इंद्रधनुष सी रंगत भर देतीं हैं।
छोटी-छोटी बूँदों जैसे उनकी बातें
मन के ख्यालों में सौ बीज हैं बोतीं
उन बीजों को सिंचने के
नये-नये हल ढुंढ निकालती।
कब बूँदों जैसे मैं मिल जाऊँ
दरिया के सिने से लग जाऊँ
उन के ही रंग में रंग जाऊँ
कैसा जादू कर देतीं हैं।
सावन के ये बरसाती बूँदें
कहीं हैं ये उमंग लातीं
कहीं ये सुख-चैन ले जातीं
दोनों ही पल सबको सताती।
कुछ मीठे तो कुछ खट्टी यादें
हर एक का मन ललचातीं
ऐसी ही कुछ सपने बुनने
वो कुछ पल हमको दे जातीं।
एक उषा की किरण जैसे
सबके मन में विनोद हैं लातीं
कितने ही सच्चे और मीठे
जीने की हैं राह दिखाते।
~ फि़जा़
Comments
सबके मन में विनोद हैं लातीं
कितने ही सच्चे और मीठे
जीने की हैं राह दिखाते।
hmmmmmmmm .....:)
cheers
हर एक का मन ललचातीं
ऐसी ही कुछ सपने बुनने
वो कुछ पल हमको दे जातीं।"
बहुत ही बढिया चित्र खिंचा है, फ़िजा जी आपने...बहुत बधाई.
समीर लाल
adaab
fiza
Nice poem..
Cheers
nagu:Wah! kya baat hai..barish ke naam se hee mere mann mein ek ajeeb se halchul mach jaati hai...gili mitti ki khushbu anayas hee mehak ooth ti hai..maano mere hee aas paas barish hui ho :D...
aapke houslafjayee ka bahut bahut shukriya...umeed hai aage bhi is nacheez ki nazmon ko aapka sahara milega :)
Cheers