Monday, May 04, 2020

आसमान से गिरे और खजूर पे अटके



रोते हुए मैं निकली तो थी मगर मस्तिष्क 
पहेलियों को सुलझाने की लड़ी खोज रहा था 
अब तक मैं ज्यादा लोगों को तो नहीं जानती थी
अगर जानती थी तब भी मदत की गुंजाईश कम थी  
किसी वजह यमुना को तंग नहीं करना चाहती थी 
एक ही नियोक्ता है सो मराठी महिला को फ़ोन लगाया 
बड़ी मिन्नत करके कहा मुझे किराये पर कमरा चाहिए 
किसी से भी केहा कर मेरे लिए किराये का एक कमरा 
कहीं से दिला सकती हैं अपने दोस्तों या अपने ही घर में?
मैं किराये के अलावा आपकी बेटी की देखभाल करुँगी 
मराठी महिला पहले तो बोलीं के नहीं-नहीं मेरे घर में नहीं 
मेरे पति अलग हैं अपनी बेहन का भी यहाँ रहना पसंद नहीं 
अपनी सहेली से पूछती हूँ वो किराये पर कमरा देती है देखें 
मैंने मिन्नत की देखिएगा पादरी के घर पर रहना मुश्किल है 
वो निकाल देंगे या धर्म का ज़ोर देंगे मुझे मेरी सुरक्षा ज़रूरी है 
मैं तुम्हारे घर रेहा लूँ किराया तुम्हें दे दूँगी तुमसे जान-पहचान है 
मगर उन्होंने मना कर दिया साफ़, उस वक्त गला सूखने को आया 
इस उम्मीद में के सहेली से कुछ सहारा मिलेगा शाम बीती काम पर 
शाम को निकलने से पहले फ़ोन आया कहने लगी सहेली मान गयी 
३०० डॉलर किराया खाना-पीना रेहना सब सहेली के घर क्या मंज़ूर है ?
नौकरी वही केशियर की न्यूनतम मजदूरी, २ दिन से ज्यादा नहीं मिलता 
खैर, कुछ बातों को येशु के भरोसे छोड़ देना चाहिए सोचकर कहा मंजूर!
महिला को कुछ सूझा, कहने लगी कुछ मत करना मैं फिर फ़ोन करती हूँ 
चाय की विराम के बाद कॅश रजिस्ट्री पर लौटी ग्राहकों को मदत करने
कुछ देर बाद एक फ़ोन आया और मैनेजर खुश नहीं हुए इस बात से 
कहने लगे, व्यक्तिगत कॉल नहीं आना चाहिए जब तक आपातकालीन न हो 
अब के ले लो आगे से ख्याल रखना कहकर फ़ोन दिया तो मराठी महिला थीं 
मानव संसाधन में रिसेप्शनिस्ट थीं मगर अपना रुबाब दिखातीं थीं 
मैनेजर परेशान मुख्या कार्यालय में हमारी पहुँच है कान लगाकर सुनने लगे 
महिला ने कहा देखो मैंने अपने पति को बहुत समझाया और उन्हें मना लिया 
तुम मेरे घर पर रेहलो किराया २०० डॉलर वो भी नकद तनख्वा वाले दिन 
मगर याद रहे ये कोई और नहीं जाने मेरे पति भी नहीं,
कहते हैं 'अनजाने से जाना अच्छा', बस हमने भी हामी भर ली 
मगर हाल तो वोही था "आसमान से गिरे और खजूर पे अटके"

~ फ़िज़ा 

No comments:

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...