Monday, January 14, 2019

हरियाली फैलाते ये बूँदें...!


ज़मीन पर गिरतीं हैं बूँदें 
जाने कितने ऊंचाइयों से 
कितने सपने संग लिए 
क्या-कुछ देने के लिए 
मचलती छलकाती हुई 
एक से दो, दो से हज़ार 
लड़ियाँ घनघोर बरसते 
कहलाते बरखा रानी 
जो जब झूम के बरसते 
ज़मीन को मोहित करते 
पेड़ों-गलियों में बसकर 
फूलों के गालों को चूमकर 
रसीले भवरों से बचाकर 
जैसे-तैसे गिरकर-संभलकर 
हरियाली फैलाते ये बूँदें 
कभी वर्षा, कभी वृष्टि 
बनकर सामने आते !

~ फ़िज़ा 

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