मुझे ढूंढ़कर आये थे कुछ लोग ...!
मुझे ढूंढ़कर आये थे कुछ लोग जब इतिहास के पन्नों से पलटे कहानियां वीरों और वीरता की अनायास मस्तिष्क की नज़रें गयीं ढूंढ़ती स्कूल से उस कक्षा की ओर कक्षा छात्र-छात्रों से भरा हुआ था बुंदेले हरबोलों के मुंह से न सही अपनी टीचर के मुंह से सुन रहे थे सन सत्तावन की मर्दानी जो लड़ी थी झाँसी वाली रानी थी ! सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते अकस्मात सोच में पड़ जाते थे काश! उस वक्त हम भी उस सेना में भर्ती हो पाते थे मर्दानी जैसी न सही साथ उसका देते थे ऐसे वीर कहानियों से हौसले बुलंद होते स्कूल की घंटी बज भी जाती फिर भी मस्तिष्क में, खूब लड़ी मर्दानी वाली कविता याद आ जाती थी किसी तरह वो स्वतन्त्र की चिंगारी हमरे अंदर भी जला जाती थी ! मुझे ढूंढ़कर आये थे कुछ लोग यूँही ख्यालों और ख्वाबों में वो लोग जो मातृभूमि के लिए वीरगति पा गयी थीं !! ~ फ़िज़ा