ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
Wednesday, November 18, 2015
दिखावे की मुस्कराहट से चेहरा नहीं खिलता ।
घर महलों सा सजाने से कभी भी घर नहीं बनता
दिखावे की मुस्कराहट से चेहरा नहीं खिलता ।
आईना नया क्यों न हो चेहरा वही नज़र आता
दिल में नफ़रतें पालो मुस्कराहट सच्चा नहीं लगता ।
धन बटोर लो जहाँ में मन संतुष्ट नहीं हो पाता
घर हो बड़ा एक कबर की जगह नहीं दे सकता !
सँवरने का मौसम हैं ख़ुशी पास से भी न गुज़रता
कीमती हो लिबास कफ़न का काम नहीं करता !
दिखावे की ज़िन्दगी, दोस्त हक़ीक़त शाम को है मिलता
कभी मौत दस्तख दे तो मिट्टी के लिए इंसान नहीं मिलता ।
'फ़िज़ा' सोचती है ये पल अभी है कल कहाँ होता ?
जो है वो आज है अब है सब कुछ यही रेह जाता ।
~ फ़िज़ा'
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Garmi
Subha ki yaatra mandir ya masjid ki thi, Dhup se tapti zameen pairon mein chaale, Suraj apni charam seema par nirdharit raha, Gala sukha t...
-
औरत को कौन जान पाया है? खुद औरत, औरत का न जान पायी हर किसी को ये एक देखने और छुने की वस्तु मात्र है तभी तो हर कोई उसके बाहरी ...
-
फिर नया साल आया वोही पुराने सिलसिले मास्क टीके बूस्टर संग उम्मीदों से भरा नया साल कोशिश अब भी वही है खुश रहो, सतर्क रहो नादानी से बच...
-
जिस बात से डरती थी जिस बात से बचना चाहा उसी बात को होने का फिर एक बहाना ज़िन्दगी को मिला कोई प्यार करके प्यार देके इस कदर जीत लेता है ...
No comments:
Post a Comment