ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ !
राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !!
एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी
सेहर यहाँ !
फिर नया साल आया वोही पुराने सिलसिले मास्क टीके बूस्टर संग उम्मीदों से भरा नया साल कोशिश अब भी वही है खुश रहो, सतर्क रहो नादानी से बचे रहो शायद दो हज़ार बाइस नयी उमंगों से भरा हो नए मौके, नयी ताकत स्वस्थ रहे सभी जनवासी मगर हौसला रखना बुलंद धैर्य साहस और संतुष्टि से भरा हो ये नया साल दोस्तों बस, कोविड से रहना दूर न इसकी दोस्ती अच्छी और न ही इसकी दुश्मनी अपने और अपनों को रखना इस से मेहफ़ूज़ दोस्तों दुआ यही है सलामत रहे ये आने वाला नया साल ख़ुशी से उम्मीदों से भरा रहे आप सभी का नया साल ! ~ फ़िज़ा
जिस बात से डरती थी जिस बात से बचना चाहा उसी बात को होने का फिर एक बहाना ज़िन्दगी को मिला कोई प्यार करके प्यार देके इस कदर जीत लेता है दिल न हम जी पाते हैं उसके बगैर मरते हैं पर उसकी हर अदा पर ज़िन्दगी जीने का एक बहाना जो देती है सभी को हर पल उसके जाने का ग़म गहरा है जिस कदर वो नस-नस में बसी मुश्किल है इस दर्द की हद पाना ज़र्रे-ज़र्रे में है यादों का नगीना समझ न आये उसके जाने का या फिर उसके ज़िंदादिली का जश्न मनाएं !?! ~ फ़िज़ा
दशहरे के जाते ही दिवाली का इंतज़ार जाने क्यों पूनावाली छह दिनों की दिवाली एक-एक करके आयी दीयों से मिठाइयों से तो कभी रंगोलियों से नए कपड़ों में सजके मनाया तो हमने भी मगर सोच में हर वक्त बचपन की दिवाली पठाखे और फुलझड़ियों में ही खो सा गया कहीं अब तो दिवाली सिर्फ दिलों में यादों में और चंद लम्हों में क़ैद है जाने कब ये रिहा होंगे क़ैदख़ानों से ! ~ फ़िज़ा
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