पेहली नज़र का धोखा
धोखा अकसर हो जाता है, कभी नादानी में तो कभी अंजाने में... जो भी हो धोखा तो धोखा है.... :) पेहली नज़र में दिल का खोना जा़लिम ये किस कदर का धोखा बातें ही मुसलसल हुईं थीं फिर खत्म हुआ सब्र दिल का जा़लिम ने चल दिया अपनी चाल रेह गया दिल अब स्रिफ रफि़क का रफ्ता-रफ्ता दिल करने लगा इक़रार अब तो जैसे रकि़ब हुआ है मेरा हाल उस से इज़हार-ए-मुहब्बत में रक्स-ए-ता-उस दिल हुआ जाता रग-ए-जान में मेरे जैसे तुम बसे हो रघ़बत सी अनंजुमन में कोई बस जाता रफि़क = friend रकि़ब = enemy रक्स-ए-ता उस = dance of the peacock रक्स-ए-जान = in my viens of my life रघ़बत= strong desire, pleasure ~ फिजा़