सवेरे-सवेरे मीटिंग में जब सुना
कल छुट्टी है क्यूंकि होली है
मन ही मन होली के गुब्बारे
रंगों से भरे दिल में फोड़ आये
मैंने कहा खुद ही से अरे ,
बुरा न मानों होली है !!!!
~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है देखा जाए तो खाना, मौज करना है फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब क्या ऐसे ही जी...
2 comments:
बेहतरीन प्रविष्टि
वाह।
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