Wednesday, October 20, 2021

जलियानावलां बाग़ !

 



लोगों की भीड़ थी पार्क में 

जैसे कालीन बिछी ज़मीं पे 

एक ठेला चलाता हुआ दिखा 

जो भर-भर लाशें एक-एक 

कोशिश करता बचाने की 

डॉक्टर ने पुछा और कितने 

सौ से भी ज्यादा कहा वो 

फिर भागा लाश उठाने 

लोगों को बचाने उधम सिंह !

~ फ़िज़ा 

5 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

मन की वीणा said...

हृदय स्पर्शी रचना।
नमन है उधमसिंह जैसे सपूतों को।

Onkar said...

नमन उधमसिंह को

हरीश कुमार said...

बहुत दुःखद घटना

Dawn said...

Aap sabhi ka bahut-bahut shukriya , dhanyavaad
abhar!

Garmi

  Subha ki yaatra mandir ya masjid ki thi, Dhup se tapti zameen pairon mein chaale, Suraj apni charam seema par nirdharit raha, Gala sukha t...