जलियानावलां बाग़ !

 



लोगों की भीड़ थी पार्क में 

जैसे कालीन बिछी ज़मीं पे 

एक ठेला चलाता हुआ दिखा 

जो भर-भर लाशें एक-एक 

कोशिश करता बचाने की 

डॉक्टर ने पुछा और कितने 

सौ से भी ज्यादा कहा वो 

फिर भागा लाश उठाने 

लोगों को बचाने उधम सिंह !

~ फ़िज़ा 

Comments

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय स्पर्शी रचना।
नमन है उधमसिंह जैसे सपूतों को।
Onkar said…
नमन उधमसिंह को
बहुत दुःखद घटना
Dawn said…
Aap sabhi ka bahut-bahut shukriya , dhanyavaad
abhar!

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