रिश्ता ही बन चूका है चाँद से ज़िन्दगी का
मोहब्बत तो चाँद से बहुत पुराना है
बचपन से लेकर आज तक याराना है
तब देखने को तरसते मचलता था मन
नयी उमंग उठने लगीं थीं मन में उससे
पूरे चाँद-रात को ख़ुशी से मचलते थे
अम्मी से कहते तब पूर्णिमा की रात है
सेवइयां बनाने की यूँही ज़िद करते थे
मीठा खाने की या चाँद से मोहब्बत
जो भी हो दोनों के होने का आनंद लेते
मोहब्बत परिपक्वता की सीमा पर है
आजकल चांदनी की सेज़ में सोते हैं
वो भी रात-भर बैठकर सुला देता है
डर नहीं उसके जाने का अपना जो है
ऐसा लगता है वो हरसू मुझे निहारता है
मिलन की सेवइयां अब खुद बनाती हूँ
मोहब्बत का स्वाद मन ही मन सहलाती हूँ
उसकी आगोश में यूँही फ़िज़ा महकाती हूँ
रिश्ता ही बन चूका है चाँद से ज़िन्दगी का
अब तो हरसू कविता आंखें चार रेहती हूँ !
~ फ़िज़ा
Comments
बाकी हमने खीर का आनंद लिया..।
😅
@शिवम् कुमार पाण्डेय : :D Bahut shukriya aapka cavité pasand karne ka aur bina khaye kheer ka anand uthaane ka :D
@Ravindra Singh Yadav: Namaste, meri kavita ko apne blog mein sthan dene ke liye aapka bahut bahut dhanyawaad.