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कैसी अदभुद है ये मिलन ..!

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मेरे मिलन की रैना सजाने  ख़याल लेके आया दिन में  कैसी अदभुद है ये मिलन  जहाँ में मचा रखा कौतूहल  हर उस शर्मीली अदा को  समाबद्ध करते चले गए   हर किसी की नज़र में  प्यार नज़रबंद हुआ एल्बम में   रह गया समय का ये खेल   इतिहास के पन्नों पर जैसे  हमेशा के लिए इस मिलन को   दे दिया एक नाम सूरज और चाँद  के ग्रहण की गाथा जैसे अमर-प्रेम! ~ फ़िज़ा 

रंगों से परहेज़ न करो...!

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कोरे कागज़ को देख  मन मचल उठा यूँही कुछ रंगो की स्याही  छिड़क दिया उनपर  लगे अक्षर जुड़ने  बनकर एक कविता  करने लगे इशारे  झूमने लगे इरादे   बरसने लगी वर्षा  यूँही कुछ मोर  झूमने लगे नाचने  कुछ देर ही में जैसे  रास-लीला होने लगे  झूमती बहारों को देख  सोचने 'फ़िज़ा' लगी  कितने सूने से थे ये  जब कागज़ था कोरा  रंगों से परहेज़ न करो  इनके बिना जग सुना  लगे ! ~ फ़िज़ा