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Showing posts from May, 2017

ऊपर है बादल,उसके ऊपर आसमान

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ऊपर है बादल,उसके ऊपर आसमान  यही है हमारे जीवन का निर्वाण   बादलों में भी हैं लकीरें खींचीं  जैसे अपने ही हाथों से है सींची   लकीरों के बीच झाँकती ज़िन्दगी  मानो देती हों अंदेशा भविष्य की कभी धुप की रौशनी में खो जाना  तो कभी साये में रौशनी को ढूँढ़ना  ज़िन्दगी की भी है अजब कहानी  ये हमारे-तुम्हारे सहारे से बनती  ज़िन्दगी के मज़े यही हैं चखती  क्यों न बादलों के संग खो जाएं  आये बरखा तब हम भी बरस जाएं ~ फ़िज़ा 

अभी मैं कच्ची हूँ ...

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नीम की निबोरी ने कहा  अभी मैं कच्ची हूँ  खुशबु में सच्ची हूँ  थोड़ा दिन और दो मुझे  पक्की हो जाऊँगी   मीठी बन जाऊँगी  तब खा भी लोगे मुझे  तो नहीं पछताऊंगी  जाते-जाते कुछ  गुण दे जाऊँगी  अभी मैं कच्ची हूँ  खुशबु में सच्ची हूँ ! कड़वी मैं लगती हूँ  सुन्दर भी लगती हूँ  हरियाली है रंग मेरा  गुणवान है अंग मेरा  सभी को न भाऊँ मैं जानते हैं सब लाभ मेरा  रखें सब पास मुझे  या रहते हैं पास मेरे  अभी मैं कच्ची हूँ  खुशबु में सच्ची हूँ ! अभी मैं कच्ची हूँ  खुशबु में सच्ची हूँ ! ~ फ़िज़ा 

एक घबराहट

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एक घबराहट  कुछ अजीब सा  जैसे पेट में दर्द  जाने क्या हो  कोई अंदेशा नहीं  धड़कन की गति  बेचैन करती  क्यों अंत यहीं हो  मेरा के मुझे  मालूम ही न हो  के किस बात की  थी ये घबराहट !!! ~ फ़िज़ा 

खुली हवा में खिली हूँ इस तरह...

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जी रही हूँ मैं खुली हवा में  ले रही हूँ सांसें खिली वादियों में  महकते हैं फूल है कुछ बदला  बहारों का मौसम फिर आगया है  खुली हवा में खिली हूँ इस तरह  मोहब्बत की खुशबु महकती है ज़रा  जी रही हूँ मैं खुली हवा में  क्यूंकि, ले रही हूँ सांसें खिली वादियों में  फ़िज़ा, महकती है कुछ  अब   चहकती है   फिर कोई अरमान मचलते फूलों में  चाँद के आगोश में यूँ बहकते अरमान ! ~ फ़िज़ा 

बहारों ने खिलना सीखा दिया मुझे ...!

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बहारों ने खिलना सीखा दिया मुझे  किसी खूंटी से बंधना न गवारा मुझे ! हौसला है अब भी न भय है मुझे  कोई साथ हो न हो ग़म न है मुझे ! दिन याद आते हैं पुराने मुझे  अकेले थे और लोग डराते मुझे ! बेफिक्र के दिन थे परेशानी थी मुझे  अपनों की याद सताती रही मुझे ! हर दिन नया हौसला है मुझे  जीने की देती यही सदायें मुझे ! खिलती कली ने कहा है मुझे  खिलना है काम बस आता मुझे ! पत्तों ने हँसकर कहा फिर मुझे  गिरते हम भी हैं पतझड़ में समझे ! खिलते फूलों ने कहा ये मुझे  खिलती रहो हमेशा ख़ुशी से मुझे ! ~ फ़िज़ा 

कहाँ जाते हो रुक जाओ !

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कहाँ जाते हो रुक जाओ  तूफानी रात थम जाने दो मौसम का क्या है बस बहाना  आने-जाने में यूँ वक़्त न गंवाओ  कहाँ जाते हो रुक जाओ ! बहलता है मन तो बहलने दो  रुका पानी उसे थमने न दो  ये जीवन है चलने वास्ते  स्वस्थ हवा में लहराने दो   कहाँ जाते हो रुक जाओ ! खुलके मिलो बाहर निकलो  ये समां यूँ ही न जाने दो  देखो चाँद वोही है आज भी  प्यार से उसकी तरफ देखो  कहाँ जाते हो रुक जाओ ! बुलाता है मुझे चाँद देखो  अपनी शुष्क बाँहों में खो  बिखेरता है रोमांच देखो  फिर जीने की राह देखो  कहाँ जाते हो रुक जाओ ! ~ फ़िज़ा