हम दोनों हैं इंसान!
हर बात पे पूछते हो के तू क्या है ? क्यों हर बार मेरी औकात पूछते हो ? जैसा भी हूँ, ऐसा ही हूँ आपके सामने गर कुछ काम-ज्यादा हो तो संभालो आखिर मैं भी एक इंसान हूँ ! ज़िन्दगी के मायने किसने लिखवाये ? जो हर कोई मिसाल जीने के देता रहे? इंसान हूँ मैं अच्छा थोड़ा बुरा भी मगर जीने के कठीन राहों पर भटकता हुआ ग़लती कर बैठूं तो क्या, इंसान हूँ ! कुछ लोग क्यों औरों पे इल्ज़ाम दें? क्यों स्वार्थी होकर भी न्याय मांगे? अपने दम पर खुशियां देते हो मगर जताते हो दुनिया का जुल्म सहते हो समझता हूँ यही कहोगे के इंसान हूँ ! जब सारा फसाद इंसानो का है तब? क्यों नहीं आपस में मिल जाएं हम? एक-दूसरे की खामियों को अपनाकर उसमें अपनी-अपनी खूबियां भर दें तो आख़िरकार सच तो यही है न - हम दोनों हैं इंसान! ~ फ़िज़ा