Friday, January 22, 2016

अब लाश है 'फ़िज़ा' मिन्नतें नहीं करती...!


उसने दिल तोड़ने का सबब कुछ ऐसा दिया 
न किसी को जीने दिया न ही मरने दिया !

ज्ञानी कभी संभलता है तो संभालता है 
मगर अज्ञानी जीने का पथ ढूंढ लेता है ! 

कहते हैं  माफ़ कर देना कठिन है 
कहने को तो सब कहते हैं जुग -जुग जियो !

वो खुद डरता था अपने आप से पागल 
कहता है मैं शक करती हूँ उसपर ! 

उसकी हर बात पे औरत का ज़िक्र करना ऐसा 
मानो किसी को परेशान करने की साज़िश !

कौन जीता है तेरे सर होने तक ऐ इंसान 
ज़िन्दगी किसी की जागीर नहीं होती !

उसकी उदासी छा जाती माहोल में हर पल 
जब भी मुझे मुस्कुराते देखता वो हरजाई !

अब लाश है 'फ़िज़ा' मिन्नतें नहीं करती 
वक़्त का क्या है जब आये तब ले जाये हमें !!

~ फ़िज़ा 

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