न थी कभी...!
न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी न थी किसी से कोई बंदगी मुश्किल में साथ थी हौसला न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी न थी किसी से कोई बंदगी ! हर हाल में सीखा मुस्कुराना दिया हौसले का नज़राना न हताश हुई ये ज़िंदगानी न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी न थी किसी से कोई बंदगी ! वो पल भी आया थक गए वक़्त आया अब निकल गए न जीने की लालसा रही कोई न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी न थी किसी से कोई बंदगी ! सूखे पत्तों का ढेर है अब चाहो तो तिल्ली झोंकलो अब जलने का न डर है कोई न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी न थी किसी से कोई बंदगी ! ~ फ़िज़ा