विस्मरणिया है संगम ऐसा ...



शुष्क मखमल सी बूँदें 
मानो ओस की मोती 
लड़ियाँ बनाके बैठीं हैं 
एक माला में पिरोये हुए 
सुन्दर प्रकृति की शोभा में 
बढ़ाएं चार चाँद श्रृंगार में 
मचल गया मेरा दिल यहीं 
लगा सिमटने उस से यूँ 
जैसे काम-वासना में लुत्प 
विस्मरणिया है संगम ऐसा 
हुआ मैं तृप्त कामोन्माद 
मंद मुस्कान छंद गाने मल्हार 
प्रकृति का मैं बांवरा हुआ रे 
श्रृंगार रस में डूबा दिया मुझे 

~ फ़िज़ा 

Comments

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !