भटकते हैं ख़याल 'फ़िज़ा' कभी यहाँ तो कभी वहां हसास ....


वो दिल मैं ऐसे बैठें है मानो ये जागीर उनकी है 
वो ये कब जानेंगे ये जागीर उनके इंतज़ार में है !

ये बात और है के हम जैसा उनसे चाहा न जायेगा 
कौन कहता है के चाहना भी कोई उनसे सीखेगा ?

वो पास आते भी हैं तो कतराते-एहसान जताते हुए 
क्या कहें कितने एहसान होते रहे आये दिन हमारे !

रुके हैं कदम अब भी आस में के वो मुड़कर बुलाएँगे
आएं तो सही के तब, जब वो मुड़ेंगे और निगाहें मिलेंगे !

भटकते हैं ख़याल 'फ़िज़ा' कभी यहाँ तो कभी वहां हसास 
क्या सही है और कितना सही है ये मलाल न रहा जाये दिल में !!

~ फ़िज़ा 

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