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मगर ये ग़ुस्सा?

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  जाने किस किस से ग़ुस्सा है वो ? अपनों से? ज़माने से? या मुझ से? क्या मैं अपनों में नहीं आती? उसकी हंसी किसी ने चुरा ली है  लाख कोशिशें भी नाकामियाब हैं  उसे हर बात पे गुस्सा आता है ! अब तो और कम बोलता है वो  रिवाज़ों में बंधा है सो साथ है  अकेलेपन से भी घबराहट है ! इसीलिए भी शायद साथ है  मगर ये ग़ुस्सा? ज़माने भर से है ! उम्मीद ही दिलासा दिलाता है  इस ग़ुस्से का कोई तो इलाज हो !!! ~ फ़िज़ा