दुःख क्यों होता है ये ऑंसूं क्यों नहीं रुकते
२००५ में मिली थी तुमसे न सोचा कभी
इस कदर स्नेह भर दोगी अपने वास्ते !
पहली मुलाकात और ढेर सारा प्यार
जहाँ भी जाती संग ले जाती हर जगह
अपनायियत और स्नेह से बांध लिया !
भेदभाव न किया बेटी और बहु में
जो भी दिया इज्जत और प्यार से
मुझ ही से मुझे छीन लिया इस कदर !
आज दिल रो रहा है यादों में समेटे हुए
कुछ मोहलत और मिल जाती हमें
कुछ और लम्हे बिता पाते संग तुम्हारे !
ढूंढ रहे हैं तस्वीरों में अब भी तुम्हें
आंसू मगर क्यों नहीं थमते मेरे
तुम्हारे चुटकुलों को सोच बहते हैं आँसू मेरे !
इस कदर छाप छोड़ गए हो दिल पर
तुम सा बनने की कोशिश करेंगे ज़रूर
जाते हुए भी प्यार की सीख दे गयी !
~ फ़िज़ा
6 comments:
बहुत सुन्दर रचना।
सुन्दर
बेहतरीन
Rupa Singh Ji, aapka behad shukriya yahan aakar meri rachna ko sarahne aur meri houslafzayi karne ka, sadar pranaam!!!
Sushil Kumar Joshi Ji, aapka behad shukriya yahan aakar meri rachna ko sarahne aur meri houslafzayi karne ka, sadar pranaam!!!
Harish Kumar Ji, aapka behad shukriya yahan aakar meri rachna ko sarahne aur meri houslafzayi karne ka, sadar pranaam!!!
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