दिल की मर्ज़ी
खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों माना के चहक रहे हैं वादियों में ये कसूर किसका है न पूछो अब बहारों की शरारत और नज़ाकत कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो ~ फ़िज़ा