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दिल की मर्ज़ी

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  खूबसूरत हवाओं से कोई कह दो  यूँ भी न हमें चूमों के शर्मसार हों  माना के चहक रहे हैं वादियों में  ये कसूर किसका है न पूछो अब  बहारों की शरारत और नज़ाकत  कैसे फिर फ़िज़ा न हो बेकाबू अब  सजने-संवरने के लाख ढूंढे बहाने  दिल की मर्ज़ी कब सुने किसी की आखिर हुस्नवालों बता भी दो वजह  फूलों के मुस्कान पे फ़िज़ा डोरे न डालो  ~ फ़िज़ा 

सेहर

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 सुबह की सर्द हवाओं से  एक हलकी सी मुस्कान  जैसे सूरज की किरणें  फैलतीं हैं रौशनी ऐसे  लगे गुलाबी सा गाल  एक सादगी और शर्म  दोनों ही साथ रहकर  नज़रों को बेहाल करे  पहली मोहब्बत का  नज़ारा सेहर दिखाए  ~ फ़िज़ा