जब भी घर लौटते है
बचपन आ जाता है
आज और कल के
झलक दिख जाते है
समय ये ऐसा ढीट है
एक जगह ठहरता नहीं
बीते कल और आज में
ये एक पल स्थिरता के
फिर ढूंढ़ता रहता है
मैं कौन हूँ ? क्यों हूँ?
इन सवालों के जवाब
तब भी और अब भी
ज़ेहन में घूमते रहते हैं !
~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
Subha ki yaatra mandir ya masjid ki thi, Dhup se tapti zameen pairon mein chaale, Suraj apni charam seema par nirdharit raha, Gala sukha t...
4 comments:
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-3-22) को "क्या मिला परदेस जाके ?"' (चर्चा अंक 4384)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
Kamini ji aapka behad shukriya !!!
Abhar!
बहुत सुंदर।
Dhanyavaad Jyoti ji
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