कल और आज

 


जब भी घर लौटते है 

बचपन आ जाता है 

आज और कल के 

झलक दिख जाते है  

समय ये ऐसा ढीट है 

एक जगह ठहरता नहीं 

बीते कल और आज में 

ये एक पल स्थिरता के 

फिर ढूंढ़ता रहता है 

मैं कौन हूँ ? क्यों हूँ?

इन सवालों के जवाब 

तब भी और अब भी 

ज़ेहन में घूमते रहते हैं !


~ फ़िज़ा 

Comments

Kamini Sinha said…
सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-3-22) को "क्या मिला परदेस जाके ?"' (चर्चा अंक 4384)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा


Dawn said…
Kamini ji aapka behad shukriya !!!
Abhar!
Jyoti Dehliwal said…
बहुत सुंदर।
Dawn said…
Dhanyavaad Jyoti ji

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !