जलियानावलां बाग़ !
लोगों की भीड़ थी पार्क में जैसे कालीन बिछी ज़मीं पे एक ठेला चलाता हुआ दिखा जो भर-भर लाशें एक-एक कोशिश करता बचाने की डॉक्टर ने पुछा और कितने सौ से भी ज्यादा कहा वो फिर भागा लाश उठाने लोगों को बचाने उधम सिंह ! ~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !