आज कुछ अजब सा देखा
बात तो दोनों की सही थी
दोनों ही अपने पेट वास्ते
जीवन का नियम संभाले
एक तो बिल से निकला
दूजा पेड़ से उड़कर आया
निकले दोनों पेट की खातिर
बस एक ही भरपेट खाया
जीवन का भी खेल देखो
किसका अंत व शुरुवात
जो भोजन बना वो नादान
जिसने खाया वो भी नादाँ
प्रकृति के कटघरे में सही
मगर अपने दिल से पूछूं
तब भी सही लगा मगर
जाने वालों का अफ़सोस
तो ज़रूर होता है मन को
ऐसा ही कुछ हुआ हम को
जब से देखा हादसे को !
~ फ़िज़ा
5 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 26 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
नियति के खेल न्यारे...
बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
सादर
@yashoda Agrawal: Aapka behad shukriya meri Kavita ko apni shrinkhla mein shamil karne ka.
@अनीता सैनी: Houslafzayee ka behad shukriya.
मार्मिक रचना
@रवीन्द्र भारद्वाज dhanyavaad sadar naman
Post a Comment