यादों का सफर
आज यूँही यादों के सफर में निकल गयी
जब हाथ पड़ा पुराने एल्बम पर
एक से दूजा तीजा मन खो गया
उन दिनों की यादें जैसे बचपन लौट आया
वो स्कूल के दिन और उन दिनों की आशाएं
छोटी परेशानियां पढ़ाई के तो खेल का मैदान
मानों सारा दुःख उसी मैदान में उंडेलते
घर से स्कूल और स्कूल से घर का रास्ता
इतना लम्बा नहीं था कभी जितना आज है
तब भी प्रकृति से एक रिश्ता बना लिया था
जहाँ यार-दोस्त हो न हों मगर पक्षियां थे
नदी-नाले फूल-क्यारियां और अमरुद का पेड़
कितने ही बार चढ़कर छत से छलांग लगाया है
काली-डंडा खेलते-खेलते तो कभी माँ के डर से
उन दिनों हर डांट में सहारा था टोनी कुत्ते का
जो चाटकर गाल सेहला भी देता गले लगा भी देता
किसी थेरपि से कम न था उसका साथ जीवन में
फिर हर सिरे के अंत समान वो भी गया और हम
स्कूल से कॉलेज के द्वार तक पहुंचे जैसे-तैसे
तो सभी को वहीँ पाया और फिर से रेस लगने लगी
वहां से भागे आज यहाँ हैं और आज भी भाग ही रहे हैं
आज सब कुछ तो है मगर बचपन तो बचपन है
उसकी बातें उस पल का एहसास एक खुशबु है
जो कभी दिल से दिमाग से ओझल नहीं होती
न उन दिनों की बातें, दोस्त और वो पलछिन
ऐसे एक सफर में हूँ आज मैं !
~ फ़िज़ा
Comments
आभार!
अनीता जी, आपका बहुत -बहुत धन्यवाद, आभार !
अनुराधा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद इस रचना को सराहने के लिए, आभार !
जिज्ञासा जी , आपको रचना पसंद आयी ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई, धन्यवाद
आभार !
प्रकाश जी, जानकर बहुत ख़ुशी हुई के ये रचना आपके बचपन तक ले गयी, धन्यवाद,
आभार