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किस्सा रोटी का

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  कण- कण जो दिखे सुनेहरा कंचन फैला खेतों में लेहरा दाना चुनकर गोदाम भरा घर पहुंचा बोरियों में भरा घर से चक्की तक सफर हमारा पलभर का साथ है हमारा आटा बनकर थैले में भरा घर आते ही आटे को गुंधा तेल, नमक, पानी से घुंधा मसल कर अच्छे से गुंधा मखमली होते ही उसे बेला बेलकर गोल चाँद जैसा तवे में ऐसा सेखा प्यार से दुलार से वो भी फुल्के आया कहते हैं जिसको यहाँ रोटी, या फिर कोई कहे इसे फुल्का गरम तवे में झुलसकर मानों  और भी खूबसूरत बने ये न्यारा  भीनी-भीनी खुशबु रोटी की पेट में जाते ही स्वर्ग दिखाए जिसे खेतों में बोया किसान ने रोटी से उसने भरा पेट हमारा देश हो या विदेश में फिरना रोटी जैसा नहीं जीवन में दूसरा  ~ फ़िज़ा