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Showing posts from June, 2018

भयादोहन !

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उसने सोचा नहीं था ग़लती से पैर रखा था निकालने से पहले उसने नीचे खींच लिया था सोचने में उसे अपनी ग़लती लगी! जिसका फायदा उसने भी उठा लिया था हर बात पर धमकाना हर तरह का डर बसा देना जब तंग आकर निडर हुई तो और बातों से डराना साल गुज़र गए लगा जैसे ज़िन्दगी फँस सी गयी जो भी हुआ आज सांस लेने में खुलासा हुआ ! ~ फ़िज़ा

हर उड़ान पर दी थप-थपाई...

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दुआओं से मांगकर लाये ज़मीन पर मुझे इस कदर प्यार से सींचा निहारकर भेद-भाव नहीं जीवनभर हर ख्वाइश की पूरी खुलकर उड़ने दिया हर पल पंछी बनकर हलकी सी आंच आये तो फ़िक्र ग़म को न होने दिया ज़ाहिर हर उड़ान पर दी थप-थपाई बढ़ाया हमेशा हौसला रहे कठोर   उम्र का नहीं होने दिया एहसास हर पल खैरियत पुछा मुस्कुराकर ज़िन्दगी माली की तरह बिता दी पिता ने बच्चों को सींच-सींचकर बच्चे भी कितने खुदगर्ज निकले   सोचते हैं काश! होते बच्चे अब तक ! ~ फ़िज़ा

मोमबत्तियाँ...!

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दूसरों को रौशनी देते हुए पिघलती हैं मोमबत्तियां कभी सोचा है, क्या गुज़रती है क्या सोचती है ये मोमबत्तियाँ? जल तो परवाना भी जाता है शम्मा के पास जाते-जाते  मगर मोमबत्ती रौशनी देते-देते  खुद फ़ना हो जाती है ज़िन्दगी कुछ लोगों की सिर्फ मोमबत्ती बनकर रेहा जाती है ! ~ फ़िज़ा

बस गुज़रे दिन बचपन की यादों में कहीं ...

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आजकल दिल लगता ही नहीं कहीं खुलकर दिल से कहने को भी कुछ नहीं धक्का मार रहे हैं ज़िन्दगी चलती नहीं जी रहे हैं क्यूंकि कोई और चारा भी नहीं बस गुज़रे दिन बचपन की यादों में कहीं ऐसा देखते-सोचते गुज़र जाए वक़्त कहीं थक गए ज़िन्दगी की नौकरी करते यहीं अब बक्श दो दफा करो हमें ज़िन्दगी शायद कुछ नयापन लगे मौत के सफर में आजकल दिल लगता ही नहीं कहीं खुलकर दिल से कहने को भी कुछ नहीं ~ फ़िज़ा