हाय-हाय करती 'फ़िज़ा' ऐसे सोच-विचार का
दिल शर्म से झुक जाता है मेरा जब नौजवानों को पाती हूँ हारा क्या ये है, नर-नारी भेदभाव का खेल सारा? या फिर है किसी की घबराहट का इशारा? लगे मिलकर तोड़ने साहस उस दिलेर का नाम 'गुरमेहर कौर' जो है मात्र एक छात्रा चुप न रेह सकी वो कायरों की तरह देख अन्याय होते अपने दोस्तों पर क्या गुनाह किया है जनतंत्र में उसने दिल की आवाज़ उठाई निष्कलंक होकर साथ देने के बदले धमकियाँ दे रहे कायर जो दे गालियां और धमकाए बलात्कार या फिर न जीवित रखने की ललकार किस तरह चुप करने की जुस्तजू है ये जो सच को सुनकर घबरा गया हो कलयुग का हो ज़माना ये मगर आज भी सत्यमेव जयते ही है नारा चाहे फिर हो ये राजनीती का खेल सारा धन्य वो देश होगा जब करेंगे आदर नारी का वर्ना वो भी नारी है जिसकी कोख से जन्में है हैवान रूप लेकर इंसानो का हाय-हाय करती 'फ़िज़ा' ऐसे सोच-विचार का साथ न दे सको सत्य का तो कम से कम रोड़ा न बनो किसी होसलेमंदों का ! ~ फ़िज़ा ...