फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ?
जो कल तक था वो आज नहीं है जो आज है वो कल तक नहीं था कल जो होगा वो आज तो नहीं है फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ? इंसान चाहता कुछ है उसे मिलता कुछ है उसे जो चाहिए वो मिल भी जाये तो क्या? वो ज़ाहिर उसे करता नहीं सो खुश हो सकता नहीं फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ? पैदा होते ही नियमों की वस्त्रों में उलझते हैं बड़े हों या छोटे हर तरह के नियमों में बंधते हैं गृहस्ता आश्रम में चलकर भी डरके रहते हैं फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ? जिसकी शिद्दत करता हैं वो दिल-ओ-जान से जिसके बिना जीना है उसका दुश्वार उसी को करता याद दिन-रात मगर नहीं दिल खोलकर जी सकता है न मरना फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ? जो दीखता है वो होता नहीं जो होता है वो दीखता नहीं फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ? फिर काहे कड़ी से कड़ी जोड़ने की बात है ? ~ फ़िज़ा