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Showing posts from July, 2015

इजहार-ए -मुहब्बत यूँ भी करना ...!

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मेरा दिल दर्द से तू भर दे इतना  के जी न सकूँ चेन से न मरना  लफ़्ज़ों के खंजर से खलिश इतना  के जी न सकूँ चेन से न मरना  इजहार-ए -मुहब्बत यूँ भी करना  के जी न सकूँ चेन से न मरना  दुआएं यूँ देना के बरसों है जीना  मगर ऐसा भी, के जी न सकूँ चेन से न मरना  ~ फ़िज़ा 

बहुत सालों बाद बचपन लौट आया था

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बहुत सालों बाद बचपन लौट आया था  किसी से इतने पास होने का एहसास अब हुआ था  जाने कैसे बिताये इतने साल ये अंजाना था  कुछ देर के लिए मानो भूल गया वक़्त हमारा था  लगा हम लौट आये स्कूल की कक्षा में फिर  उसी बेंच पर बैठकर बातें कर रहे थे कुछ देर  भेद-भाव न था आज फिर भी मिलन पुराना था  मानो जैसे पानी और दूध का मिलन था  मिलने की देरी थी फिर जुदा न हो पाना था  लौट आये हैं अपने घरोंदों में अब लेकिन  एक बड़ा हिस्सा छोड़ आये उन्हीं गलियों में  जहाँ हम सब पले -बढे और खेले थे !!! ~ फ़िज़ा