मैं भी हूँ एक इंसान...!!!
मुझे कुछ केहना है हाँ, मुझे भी कुछ केहना है कब तक ये दौर चलेगा जहां तुम कहोगे और मैं सिर्फ आदेशों का पालन करूँगी? कब तक तुम सही कहोगे और मैं हामी भरूँगी ? मैं भी एक इंसान हूँ हाड़-मांस की बनी जीवि हूँ मुझे यूं ना नकारो के मैं कुछ भी नहीं हूँ.... मैं भी इंसान हूँ, सिर्फ फरक ये है मैं बच्चे जनती हूँ साल के दसवे महीने में कभी जल्दी भी मेरी तबियत की हैसियत से तुम्हारे हर नाज़ों-नखरों को सर-आँखों पर रख मैं मुस्कुराती हूँ ताके तुम गर्व से लोगों पर रोब जमा सको लेकिन जब मेरी सुनी को अनसुनी करो तब मैं भी केहना चाहूंगी और मुझे भी कोई सुने क्युंके मैं भी एक इंसान हूँ तुम्हारी तरह हाड़-मांस की बनी एक नन्ही जान किसी के अंचल में पली -बड़ी किसी की लाडली बेटी तो किसीकी बेहन किसी की दोस्त तो किसी की सखी हूँ मैं मेरे रगों में भी वोही खून दौड़ता है जो तुम्हारे मेरा भी कोई अभिप्राय है, मेरा भी कोई अस्तित्वा सब सेहाती हूँ प्यार के खातिर वर्ना लोग मु...