आज भी लकडियाँ बँटोरता हूँ...
आज के युग में जो भी हो रहा है....उन सभी को मद्दे नज़र रखते हुए येही कुछ लिख बन पाया हमसे...आप सभी के
इसिलाह की मुंतजि़र.....
लकडियॉ बिन ने आया था किसी रोज़
काले बादलों का कॉरवॉ आता देख
छोड गया इन्हें ये सोच..
कल फिर आॐगा !
आज नया दिन है..पहाडों की परछाई के पीछे से
किरण झॉक रही थी और शुश्क हवा
अँगिठी के पास बैठने का बहाना दे रही थी !
याद आया, आज फिर लकडियॉ बिननी है
सुना है इस बार जा़डे की सरदी कुछ लम्बी है
लकडियों पर ओस की मोतियॉ
मानों लडी बनाकर बैठीं हों !
मैंने एक नहीं मानी-गिली ही सही
उठा लाया उन्हें जलाने के वास्ते...
सुबह उठा तो देखा लकडियों पर
हरी-हरी पत्तियों की कोपलें निकल आईं हैं
मानो मरे हुये में जान आ गई !
फिर दिल न माना कुछ और सोचने
निकाल फेंका बगीचे में, के
फूलो-फलो तुम भी बगीया के किसी कोने में
बन जाओ एक इसी गुलिस्तॉ में !
फिर सोचने लगा मैं -उस दिन बादलों को देख...गर मैं
खाली हाथ न चला आता
तो शायद ये राख का ढेर बनी रेहतीं
मैं कुछ और गरम आँच सेख लेता....लेकिन फिर सोचा -
जीवन-दान की जो आँच में सुकून है
वो किसी आग की आँच में कहॉ?
आज भी लकडियाँ बँटोरता हूँ...
लेकिन देख-परेख के.....!!!
~फिजा़
इसिलाह की मुंतजि़र.....
लकडियॉ बिन ने आया था किसी रोज़
काले बादलों का कॉरवॉ आता देख
छोड गया इन्हें ये सोच..
कल फिर आॐगा !
आज नया दिन है..पहाडों की परछाई के पीछे से
किरण झॉक रही थी और शुश्क हवा
अँगिठी के पास बैठने का बहाना दे रही थी !
याद आया, आज फिर लकडियॉ बिननी है
सुना है इस बार जा़डे की सरदी कुछ लम्बी है
लकडियों पर ओस की मोतियॉ
मानों लडी बनाकर बैठीं हों !
मैंने एक नहीं मानी-गिली ही सही
उठा लाया उन्हें जलाने के वास्ते...
सुबह उठा तो देखा लकडियों पर
हरी-हरी पत्तियों की कोपलें निकल आईं हैं
मानो मरे हुये में जान आ गई !
फिर दिल न माना कुछ और सोचने
निकाल फेंका बगीचे में, के
फूलो-फलो तुम भी बगीया के किसी कोने में
बन जाओ एक इसी गुलिस्तॉ में !
फिर सोचने लगा मैं -उस दिन बादलों को देख...गर मैं
खाली हाथ न चला आता
तो शायद ये राख का ढेर बनी रेहतीं
मैं कुछ और गरम आँच सेख लेता....लेकिन फिर सोचा -
जीवन-दान की जो आँच में सुकून है
वो किसी आग की आँच में कहॉ?
आज भी लकडियाँ बँटोरता हूँ...
लेकिन देख-परेख के.....!!!
~फिजा़
Comments
idhar kaam dham me itna ulajh giya hoon ke kavita ki samajh bhi nahi rahi
araam se padh kar teeka tippni karunga
Jeevandaan is offcourse Mahadaan