करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !
ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में उनका खेल देखने वाले हैं कम ! अन्य हर स्तर पर है वो आगे मगर करे भिन्नता अपने ही वर्ग से ! जहाँ समानता की बात करते हैं वहीं पुरुषों को नीचा दिखाते हैं ! दोनों को कब हम बराबर देखेंगे तराज़ू में कभी ये तो वो भारी है ! आओ मिलके करें ये प्रण अब से करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष ! मगर ये भी न भूलें स्त्री को अभी आना है और आगे उसे बढ़ने दो ! ~ फ़िज़ा