तू रुख मोड़ बढ़ जा आगे !
कुछ रिश्ते, कुछ बातें होने के लिए होतीं हैं वर्ना यूँही कौन कैसे किसी को समझता? क्या अच्छा और अच्छा नहीं कैसे समझते? जब तक हादसे और किस्से न समझाते हमें ! जब आँख खुले तभी सवेरा समझ लेना ठीक बेकार सोचने में वक़्त ज़ाया करने से क्या ? जीवन की यही रीत है प्रकृति ने सिखलाई जो भी आये सामने तू रुख मोड़ बढ़ जा आगे ! ~ फ़िज़ा